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...तो राह चलते मिल जाएंगे ईश्वर-चेतन शास्त्री

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वृजेन्द्रसिंह झाला

’बड़े प्यार से मिलना सबसे दुनिया में इन्सान रे, न जाने किस भेष में बाबा मिल जाए भगवान रे...’। 60 के दशक की एक हिन्दी फिल्म के इस भजन की इन पंक्तियों को जीवन में उतार लें तो सहज ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। उज्जैन के सिंहस्थ मेला क्षेत्र में स्थित श्री गुरुकार्ष्णि शिविर में भागवत तत्वज्ञ चेतन शास्त्री जी महाराज से मिलकर भी कुछ इसी तरह की बात सामने आई। सहज और सरल स्वभाव के स्वामी शास्त्री जी ने सिंहस्थ तैयारियों की व्यस्तता के बावजूद वेबदुनिया से बातचीत के लिए समय निकाला।
बातचीत के दौरान वे इस बात का पूरा ध्यान रख रहे थे कि वहां मौजूद किसी भी अतिथि को कोई असुविधा न हो। बीच-बीच में शिविर के निर्माण कार्य में जुटे मजदूरों से बात कर उन्हें निर्देश भी दे रहे थे। फिर शुरू हुआ धर्म और सिंहस्थ पर बातचीत का सिलसिला। 
 
उदासीन संप्रदाय से संबंध रखने वाले शास्त्रीजी कहते हैं कि जिस तरह सूर्य सबको समान रूप से प्रकाश देता है, अग्नि का गुण सबको समान रूप से ताप देना है, उसी तरह इंसान के व्यवहार में भी समानता होनी चाहिए। यदि आपकी दृष्टि और व्यवहार में भेद है तो वह धर्म नहीं है। व्यक्ति को हर हाल में समदर्शी होना चाहिए, प्राणी मात्र में ईश्वर को देखना चाहिए। यदि व्यक्ति में व्यावहारिक समानता है तो एक दिन राह चलते ही ईश्वर मिल जाएंगे।
 
इस संबंध में वे संत नामदेव का उदाहरण देते हैं, जिनकी रोटी एक कुत्ता लेकर भाग जाता है। तो नामदेव विट्ठल.. विट्ठल पुकारते हुए उसके पीछे दौड़ते हैं और कहते हैं विट्ठल रोटी में घी तो लगाने दे। अर्थात वे एक कुत्ते में भी ईश्वर को देख रहे थे। इसी व्यावहारिक समानता के कारण ही उन्हें ईश्वर से साक्षात्कार होता है।
 
धर्म की वर्तमान स्थिति से दुखी शास्त्रीजी कहते हैं कि आज के दौर में धर्म के नाम पर पाखंड बहुत हो रहा है। कुछ ढोंगी लोग उधम करते हैं और सड़क पर जाम लगाकर बैठ जाते हैं, यह उचित नहीं है।
 
सिंहस्थ से बढ़ेगा आपसी तालमेल : शास्त्री जी कहते हैं कि सिंहस्थ के दौरान लोग संतों का सत्संग सुनेंगे, साथ में बैठकर भोजन करेंगे, जनकल्याण के लिए यज्ञ-हवन होंगे। इससे लोगों में आपसी तालमेल बढ़ेगा, विश्वास बढ़ेगा। वे कहते हैं कि लोग पुण्यतीर्थ में एकत्र होकर सद्कार्य करें और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें।
माता का ऋण नहीं चुका सकते : चेतन शास्त्री जी कहते हैं कि माताएं सबसे ज्यादा पूज्य होती हैं। एक पुत्र को संन्यास ग्रहण करने के पश्चात पिता को प्रणाम करने की आज्ञा नहीं होती, लेकिन वह माता को प्रणाम कर सकता है क्योंकि मातृ ऋण से कोई भी व्यक्ति मुक्त नहीं हो सकता। वे कहते हैं कि महिलाओं को सभी मंदिरों में प्रवेश दिया जाना चाहिए। जहां महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जाता, वह समझ से परे है।

छठी मंजिल पर गौशाला : हकीकत में यह सुनना में अजूबा ही लगता है कि लेकिन शास्त्री जी के दिल्ली स्थित आश्रम में छठी मंजिल पर गौशाला है। छत पर ही गायों के अनुकूल माहौल तैयार किया गया है। गायें लिफ्ट के जरिए छठी मंजिल पर पहुंचती हैं। 
क्या है भागवत? : भागवत मर्मज्ञ शास्त्री जी कहते हैं कि श्रीमद भागवत मनुष्य जीवन की जीवन शैली है। तीनों तापों से व्यथित होकर मनुष्य जब भागता है तब भागवत की प्राप्ति होती है। भागवत से तात्पर्य है कि जब भगवत भक्त संसार से विमुख होकर भगवान की तरफ जाते हैं तो उन्हें भागवत कहते हैं। भगवान कहते हैं कि संसार से मुंह मोड़कर जब व्यक्ति मेरे सम्मुख आता है तो मैं उसे कई जन्मों के पापों से मुक्त कर देता हूं। दरअसल, भगवान को जानने वाला ही भागवत होता है। 
 
कौन हैं उदासीन : उदासीन संप्रदाय की व्याख्या करते हुए चेतन शास्त्री कहते हैं कि उद और आसीन शब्द से मिलकर बना है उदासीन। उद यानी ऊपर और आसीन यानी आश्रित होना या निर्भर होना। अर्थात जो ऊपर अर्थात परमात्मा पर आश्रित है, वही उदासीन है। वे कहते हैं कि उदासीन संप्रदाय की शुरुआत ब्रह्मा के मानस पुत्र- सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार से मानी जाती है। भागवत के अनुसार ब्रह्मा के ये चारों पुत्र ईश्वर नाम की महिमा के कारण आज भी पांच वर्ष के हैं। लेकिन, इस लौकिक संसार में उदासीन संप्रदाय के पहले आचार्य भगवान श्रीचन्द्रजी हैं, जो कि सिखों के प्रथम गुरु नानकदेवजी के पुत्र थे।
 
श्रीचन्द्रजी को शिव स्वरूप माना जाता है, वे पृथ्वी पर करीब 130 वर्ष तक रहे। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने सेना भी बनाई और अपनी लीलाओं से तत्कालीन मुगल शासकों को भी अचंभित किया। ऐसा कहा जाता है कि श्रीचंद्रजी को अंतिम बार एक पत्थर पर बैठकर रावी नदी पार करते हुए देखा गया था, उसके बाद उन्हें नहीं देखा गया। नगर ठट्ठा (वर्तमान पाकिस्तान) में आज की उनका धूना चैतन्य है। 

सिंहस्थ के दौरान कार्ष्णि शिविर में कार्यक्रम : शास्त्रीजी कहते हैं कि सिंहस्थ के दौरान शिविर में अन्नक्षेत्र संचालित होगा, जिसमें प्रतिदिन करीब 5000 लोगों के भोजन की व्यवस्था रहेगी। प्रतिदिन यज्ञ-हवन आदि होंगे, जिससे वातावरण शुद्ध होगा। मां भगवती परांबा का नित्य अभिषेक होगा साथ ही ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे’ का अखंड संकीर्तन होगा। 
 
इसके अलावा भागवताचार्य रमेश भाई ओझा द्वारा भागवत कथा (23 से 30 अप्रैल), मलूक पीठाधीश्वर राजेन्द्रदास जी महाराज द्वारा रामायण कथा (1 से 7 मई), कृष्णचंद्र शास्त्री (ठाकुरजी) द्वारा भागवत कथा (8 से 14 मई), स्वामी रामदेवजी के सान्निध्य में योग शिविर (16 से 20 मई), पद्ममश्री स्वामी रामस्वरूप शर्मा एवं उनकी मंडली द्वारा नित्य रासलीला, शिविर अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी द्वारा गीता पर प्रवचन (16 से 20 मई) होंगे। सिंहस्थ के दौरान स्वामी गोविंददेव गिरि, स्वामी राजेश्वरानंद रामायणी, कार्ष्णि स्वामी स्वरूपानंद जी, स्वामी श्यामसुंदर दास जी, परमानंदजी महाराज, अद्वैतानंदजी महाराज, विश्व चैतन्यजी महाराज, सुमेधानंदजी महाराज, चेतन शास्त्री जी महाराज, बृज चैतन्य जी महाराज एवं गोविंदानंद जी महाराज के भी प्रवचन होंगे। 
 
उदासीन अखाड़े के तीर्थ पुरोहित : सिंहस्थ में 
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तीर्थ पुरोहित का अपना महत्व है। पंडित आशीष जोशी बड़ा उदासीन अखाड़ा, नया उदासीन अखाड़ा और निर्मल अखाड़ा के तीर्थ पुरोहित हैं। जोशी परिवार पारंपरिक रूप से करीब 100 वर्ष से तीर्थ पुरोहित का कार्य कर रहा है। वर्तमान में आशीष जोशी इन अखाड़ों के धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करवाते हैं। इन अखाड़ों के ध्वजा पूजन से लेकर शाही स्नान से पहले पंडित जोशी क्षिप्रा पूजन और भगवान श्रीचंद्रजी का अभिषेक एवं अन्य अनुष्ठान संपन्न करवाते हैं।   
 

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