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यादों को ताजा करेंगी अर्जेंटीना और डच टीम

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साओ पाउलो , सोमवार, 7 जुलाई 2014 (17:48 IST)
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साओ पाउलो। अर्जेंटीना और नीदरलैंड्स विश्व कप के सेमीफाइनल में जब आमने-सामने होंगे तो उनके जेहन में 36 बरस पहले 1978 में खेले गए विवादित फाइनल मुकाबले की यादें ताजा हो जाएंगी।

उस समय विश्व कप सैन्य तानाशाही के दौर में खेला गया था जिसमें मेजबान अर्जेंटीना ने डच टीम को अतिरिक्त समय में 3-1 से हराया। मारियो केंपेस ने उस मैच में 2 गोल किए थे। डच टीम 1974 फाइनल में पश्चिम जर्मनी से 2-1 से हारी थी। कोई यूरोपीय टीम दक्षिण अमेरिका में विश्व कप जीतने के इतने करीब नहीं पहुंची थी।

डच टीम को योहान क्रूइफ की कमी खली लेकिन टीम कमोबेश वही थी जिसने 4 साल पहले फाइनल खेला था। केंपेस ने अर्जेंटीना को बढ़त दिलाई लेकिन सब्स्टीट्यूट डिक नानिंगा ने बराबरी का गोल दागा। अर्जेंटीना ने अतिरिक्त समय में केंपेस और डेनियल बर्तोनी के गोलों के दम पर जीत दर्ज की।

नीदरलैंड्स की टीम ने दावा किया कि शुरुआत में ही उनकी लय बाधित हो गई जब अर्जेंटीना के खिलाड़ियों ने रेने वान डे कर्कोफ की कलाई पर प्लास्टर को लेकर शिकायत की थी।

क्रोल ने बाद में डेविड विनर की किताब ‘ब्रिलियंट आरेंजी’ में लिखा कि उन्होंने सारी तैयारी पहले ही कर ली थी। हमें इंतजार कराया और रैफरी ने कुछ नहीं किया। उन्होंने कहा कि अर्जेंटीना ने इटली के सर्जियो गोनेला को रैफरी चुनने के लिए फीफा पर दबाव बनाया था। इसके अलावा सैनिक तानाशाह जॉर्ज विडेला ने भी अपने दबदबे का इस्तेमाल किया।

दूसरे चरण के आखिरी मैच में अर्जेंटीना को पता था कि ब्राजील को पछाड़कर फाइनल में पहुंचने के लिए उसे पेरू को 4 गोल से हराना होगा। उन्होंने अर्जेंटीना मूल के पेरू के गोलकीपर रेमन किरोगा के सामने 6 गोल कर डाले।

फाइनल में माहौल इतना तनावपूर्ण था कि आखिरी मिनटों में गोल चूकने वाले डच स्ट्राइकर रेंसेंब्रिंक ने कहा कि अगर वह गोल हो जाता तो पता नहीं क्या आलम होता। उन्होंने कहा कि अर्जेंटीना के लोग इस कदर पागल हो गए थे कि अगर हम जीत जाते तो स्टेडियम से टीम होटल तक लौटना जोखिमभरा रहता। (भाषा)

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