- मधुकर डी. बुधे
सेंट्रल इंडिया चैंपियनशिप इंदौर के गाँधी हॉल में होना थी, बात 1973 की है। संकटकालीन परिस्थितियों में गावड़े सर को राज्य संगठन का तदर्थ सचिव बनाया गया। इसी वर्ष राष्ट्रीय स्पर्धा में प्रदेश की पुरुष टीम ने शक्तिशाली महाराष्ट्र को कड़ी टक्कर देते हुए तहलका मचा दिया (4-5 की)।
* 1974 में अभय छजलानी का टेबल टेनिस से जुड़ना- और संयोग ऐसा बना कि इंदौर को राष्ट्रीय चैंपियनशिप की मेजबानी भी मिल गई। इंदौर का पोद्दार हॉल, जो कि एक गोदाम था, अभयजी के अथक एवं सार्थक प्रयासों से बना राष्ट्रीय स्पर्धा का साक्षी।
1974 की इस राष्ट्रीय स्पर्धा की विशेष बात यह रही कि राज्य की महिला टीम ने चैंपियनशिप जीती और रीता जैन एकल वर्ग की राष्ट्रीय विजेता बनीं। प्रसिद्ध कंपनी 'बाटा इंडिया' ने अपने वार्षिक कैलेंडर पर रीता जैन का एक एक्शन चित्र सम्मानस्वरूप प्रकाशित किया।
सत्तर के दशक में बीएल चौरसिया, मदन चौधरी, कौशिक बंधु, मृणालिनी खोत, उषा पोत्दार, उषा जैन, परवीन मुश्ताक, बी. चक्रदेव जैसे खिलाड़ी टीम के आधार स्तंभ रहे।
1974 की इस खेल सफलता ने अभय छजलानी, सुरेश गावड़े, रवि निवसरकर, यशवंत पंतोजी जैसे टेबल टेनिस प्रेमियों के मन में हॉल होना चाहिए, ऐसा संकल्प पैदा किया। 'अभय प्रशाल' की पृष्ठभूमि यही थी। और वर्तमान में देश के तीसरे सर्वसुविधा संपन्न हॉल के रूप में इंदौर का 'अभय प्रशाल' हमारे सामने है। प्रदेश का टेबल टेनिस संगठन छः मर्तबा 'सर्वश्रेष्ठ' होने का प्रेसीडेंट अवॉर्ड पा चुका है।
* फिर लौटें खेल गतिविधियों पर- गावड़े सर स्वयं हॉफ वॉली के अच्छे खिलाड़ी थे और वे प्रतिदिन खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देते थे। महिला खिलाड़ियों के ज्यादा उभरने का कारण उनकी खेल के प्रति अत्यधिक लगन व अनुशासन का होना था।
पुरुष खिलाड़ियों में इसकी थोड़ी कमी थी। कड़े प्रशिक्षण का ही सुपरिणाम था रीता जैन का राष्ट्रीय विजेता बनना, उज्ज्वला महाडिक का कटक में इंटेल कप जीतना, स्निग्धा मेहता का 1982 में इंदौर में इंदुपुरी जैसी निष्णात खिलाड़ी के खिलाफ फाइनल खेलना।
एक समय क्रिकेट से भी अधिक लोकप्रिय इस खेल में स्निग्धा मेहता, रीता जैन, ज्योति मेहता, मीता सिन्हा रॉय अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनीं। पूर्वोत्तर राज्य की वरिष्ठ खिलाड़ी मीता ने मप्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए इंदौर को अपना निवास बनाया एवं यहीं पढ़ाई की।
इंदौर की टेबल टेनिस का चरम था रिंकू गुप्ता (आचार्य) का कैडेट गर्ल्स, जूनियर गर्ल्स एवं महिला एकल खिताब जीतकर राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित करना। पुराणिया दंपति (मोतीलाल एवं गीता) ने वेटरंस की विश्व स्पर्धा में कई बार भारत का प्रतिनिधित्व किया। प्रमोद गंगराडे ने विश्व विकलांग चैंपियनशिप में भारत को पदक दिलाया।
इंदौर एवं प्रदेश की टेबल टेनिस गतिविधियों को सुचारु रूप से संचालित करने में राहुल बारपुते एवं अभय छजलानी का सक्रिय एवं कुशल मार्गदर्शन सतत प्राप्त होता रहा जबकि गावड़े सर, रवि निवसरकर, एसडी झा, एलजी वर्मा, यशवंत पंतोजी, वीपी वाघ, चन्द्रा नायडू, पद्माकर भागवत कर्मयोगी बन जुटे रहे।
साठ के दशक में इंदौर में कुल जमा तीन टेबलें थीं, वहीं एक अनुमान के अनुसार आज 1000 से अधिक टेबलें मौजूद हैं, पर वर्तमान में उपलब्ध सुविधाओं का दुर्भाग्य से शत-प्रतिशत दोहन नहीं हो पा रहा है।
जब सुविधाओं का अभाव था, तब खिलाड़ी ज्यादा सक्रिय थे और अब असीमित सुविधाओं के बावजूद खिलाड़ियों में टेबल टेनिस के प्रति उपेक्षा भाव है, उदासीनता है। टीवी व क्रिकेट का अधिक लोकप्रिय होना भी कारण हो सकता है। कुछ भी हो स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही।
अंत की एक बात, खिलाड़ियों को तो विक्रम पुरस्कार से नवाजा जा चुका है, पर दुर्भाग्य से टेबल टेनिस के पदाधिकारियों को समुचित सम्मान नहीं मिल पाया। अपवादस्वरूप अभयजी मध्यप्रदेश क्रीड़ा परिषद के उपाध्यक्ष एवं सुरेश गावड़े क्रीड़ा परिषद की स्थायी समिति में नामजद अवश्य रहे।