यह टेनिस कोर्ट की सतह का ही फर्क है, जो विश्व नंबर एक फेडरर को विश्व नंबर दो नडाल के समक्ष झुका देता है। तो अपनी पसंदीदा सतह पर फेडरर मीर बन जाते हैं। नडाल नहीं। 'फ्रेंच ओपन' के आगमन के पूर्व क्ले कोर्ट मुकाबलों में क्ले कोर्ट के वर्तमान मास्टर राफेल नडाल, रोजर फेडरर पर भारी पड़ते नजर आ रहे थे और उन्होंने खिताबी 'हैट्रिक' दर्ज करके अपनी काबिलियत भी साबित कर दिखाई।
हालिया स्थिति यह है कि नडाल 4 बार फेडरर के खिलाफ जीत चुके हैं और अपने मनपसंद कोर्ट पर फेडरर। फेडरर नडाल तो क्या अन्य किसी को भी अपनी पीठ पर हाथ नहीं रखने देते हैं तभी तो पिछले चार बरसों से 'विम्बलडन ताज' किसी और का नहीं सिर्फ और सिर्फ फेडरर का है।
फेडरर और नडाल के बीच का सतह के खेल का यह अंतर आज का नहीं, बल्कि बहुत पहले का है। यदि टेनिस की ग्रैंड स्लैम स्पर्धाओं के ओपन एरा अर्थात 1968 के बाद की बात करें तो ऐसे अनेक टेनिस धुरंधर निकल पड़ेंगे, जिन्होंने 'क्ले' और 'ग्रास' दोनों सतहों पर अपने हाथ तो आजमाए, किंतु दोनों हाथों में लड्डू रखने में कामयाब नहीं रहे। क्ले ने दाने डाले तो ग्रास पर कुछ हाथ नहीं आया और ग्रास पर खिताब जीता तो क्ले ने नहीं पूछा।
जिमी कोनोर्स और जॉन मैकनरो के दु:ख को समझा जा सकता है कि 'विम्बलडन' उन्होंने फतह किया, पर फ्रेंच ने उन्हें नाउम्मीद रखा। तो मैट्स विलेंडर और इवान लेंडल के हर प्रयास 'विम्बलडन' पर असफल होते रहे यद्यपि फ्रेंच ओपन को तीन-तीन बार जीत चुके थे।
सात बार के विम्बलडन विजेता पीट सैम्प्रास को कौन नहीं जानता, जो फ्रेंच खिताब के आसपास भी नहीं फटक पाए। राफेल नडाल पिछले तीन वर्षों से फ्रेंच खिताब जीत रहे हैं, पर पिछले वर्ष वे विम्बलडन के फाइनल में पहुँचकर फेडरर से हार गए और यही हाल फेडरर का है, जो पिछले चार बार के विम्बलडन विजेता हैं, किंतु पिछले 2 वर्षो से फ्रेंच ओपन की खिताबी दौड़ में नडाल से हार रहे हैं।
हाल ही में फ्रेंच ओपन खत्म हुआ है। लिहाजा पहले यह देखें कि फ्रेंच जीतने वाले कौन-कौन विम्बलडन फतह नहीं कर पाए हैं? 1968 से 2007 तक के फ्रेंच द्वंद्व में कुल 40 बार खिताब जीते गए हैं। 20 खिलाड़ियों ने 29 बार फ्रेंच खिताब पाया है। तीन बार जीतने वाले हैं मैट्स विलेंडर, इवान लेंडल, गुस्तावो कुयर्टन और दो बार विजयी हुए हैं जिम कुरियर, सर्गेई ब्रुगेरा, राफेल नडाल।
14 खिलाड़ी एक-एक बार फ्रेंच ओपन विजेता बने। क्रेन रोजवाल, ए. गिमेनो, इलि नस्तासे, ए. पनाट्टा, जी. विलास, यानिक नोहा, माकल चैंग, आंद्रे गोमेज, थॉमस मस्टर, कैफ्रेलिनिकोव, कार्लोस मोया, अलबर्टो कोस्टा, जी. गाउडियो, हुआन कार्लोस फरेरो। अब इन नामों की प्रतिभा पर तो कोई शक नहीं किया जा सकता, पर अफसोस इस बात का कि विम्बलडन खिताब इनका कभी नहीं हुआ।
इन 20 में से मात्र 5 विम्बलडन का फाइनल जरूर खेले, जीत नहीं सके यह उनका दुर्भाग्य- सबसे अधिक धमाकेदार काम रहा केन रोजवाल का।
रोजवाल ओपन एरा के पहले 1954 और 1956 में विम्बलडन फाइनल में थे, पर तब उन्हें जे. ड्रॉब्नी और एलए होड ने शिकस्त दी। दाद देना पड़ेगी रोजवाल के धैर्य और हिम्मत की कि वे 1970 और 1974 में पुनः फाइनल में पहुँचे और इस बार अर्थात ओपन एरा में रोजवाल को क्रमशः जॉन न्यूकॉल एवं जिमी कोनोर्स ने नहीं जीतने दिया।
20 साल के इंतजार (1954-74) के बाद भी विम्बलडन उनका नहीं हो सका। अनूठी मिसाल है रोजवाल। 1973 में इलि नस्तासे ने फ्रेंच ओपन जीता, यही नस्तासे 72 एवं 76 में विम्बलडन फाइनल खेले और हारे। इवान लेंडल फ्रेंच विजेता रहे (1984, 86, 87), किंतु 86 के विम्बलडन फाइनल में उन्हें बोरिस बेकर तथा 87 में पैट कैश से हारना पड़ा।
दो बार के फ्रेंच विजेता ( 91 एवं 92) जिम कुरियर 1993 के विम्बलडन फाइनल में अपने ही देशवासी पीट सैम्प्रास से हार जाते हैं। आज के नंबर दो राफेल नडाल 2005 एवं 2006 में फ्रेंच खिताब जीत चुके हैं, पर 2006 का विम्बलडन फाइनल वे रोजर फेडरर को जीतने से नहीं रोक पाए। शेष 15 तो विम्बलडन में ऊँचे कहीं दिखाई नहीं दिए।