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बूम में भी नहीं मिला बून

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- बीजी जोशी
बिसात बिछाने वाली जगह है बूम तथा विजयी आशीर्वाद कहलाता है बून। बेल्जियम के शहर बूम में खेले गए चैंपियंस चैलेंस कप में भी भारतीय टीम को जीत का प्रसाद (बून) नहीं मिला। उसे कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा।

सौ फीसदी मजबूत टीम नहीं होना, इसकी मुख्य वजह रही। हालाँकि अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर चर्चा में यह आम राय आती है कि हॉकी का भविष्य भारत-पाकिस्तान की कलात्मकता में ही निहित है।

टीम के साथ गए दमनदीप सिंह, सुनील यादव और विक्रमकांत कमजोर प्यादे बने। दमनदीप का योगदान नकारात्मक रहा। सुनील यादव ने जब-तब रफ टैकलिंग कर पीले कार्ड से दंडित होकर एक खिलाड़ी घटाया। कांस्य पदक के मैच में 4-0 की बढ़त वाली टीम सुनील के खराब खेल से हार की स्थिति में पहुँच गई थी।

भारत ने 4-3 से मैच जीता। वस्तुतः योरपीय अंपायर भारतीयों से विशुद्ध खेल की अपेक्षा रखते हैं। मामूली गलती पर भारतीयों को कड़ा दंड देते हैं जबकि अन्य को बख्श देते हैं।

बराबरी के मैचों में विरोधियों ने खेल कौशल के बूते पर नहीं भारतीयों को सहज गलतियों पर हराया। न्यूजीलैंड के खिलाफ टक्कर चल रही थी। संदीपसिंह, गुरबाज ने कीवि खिलाड़ियों को स्लाइड टैकल किया, अपने 25 गज में। इस पर आक्रामक फ्री हिट मिलनी थी लेकिन अंपायर ने भारत के खिलाफ पेनल्टी कॉर्नर दे दिया।

टूर्नामेंट में सर्वाधिक 9 गोल दागने वाले हेडन शॉ की फ्लिक गोल के बाएँ कोने में घुस कर बढ़त दे गई। मैच में लौटने के प्रयास में खुली डिफेंस छोड़ टीम ने आत्मघाती गोल खाकर 0-2 से पराजय स्वीकारी।

एक फॉरवर्ड के रूप में खेलकर पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ संदीपसिंह ने टूर्नामेंट में चार गोल दागे। टैकलिंग में कमजोर संदीप को प्रशिक्षक ने कुछ मैचों में मिड फिल्डर व फॉरवर्ड खिलाकर बुद्धिमता भी दिखाई। पर अर्जेंटीन के खिलाफ निर्णायक मैच में वे अधिकांश समय बैंच पर शोभित रहे।इस दरमियान भारत ने 6 पेनल्टी कॉर्नर बर्बाद किए। ट्रंप कार्ड को बदरंग करने की हम भारतीयों की अक्ल से अर्जेंटीनियों ने फतह पाईं।

सिर्फ कमजोर टीम के खिलाफ ही आसानी से जीत मिलती है। दिग्गजों के मैच में खेल कौशल की उत्कृष्टता ही विजयी लाती है। अभी कर्नाटक का कोई खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम में नहीं है। वहाँ के गोली भरत छेत्री, प्लेमैकर अर्जुन हलप्पा और सजग रक्षक विनय को टीम की संपत्ति बनाना सौभाग्य लाएगा। गगन अजीतसिंह या दीपक ठाकुर में से किसी एक को प्रमुख स्ट्राइकर के रूप में टीम में लेना सही रणनीति होगी।

भारतीय हॉकी महासंघ के कर्ताधर्ता प्रयोग ही करते रहे, तो निश्चित ही भारतीय टीम बीजिंग ओलिंपिक-2008 का पथ भूल जाएगी। ओलिंपिक से ओझल होने पर हॉकी का नाम देश में बचेगा नहीं। यह आशंका निर्मूल बने, ऐसी प्रार्थना हम सभी की है। भारत ने टूर्नामेंट में कुल 16 गोल दागे। संदीप सिंह व प्रभजोत सिंह ने 4-4, दिलीप तिर्की ने 3, तुषार खांडेकर ने 2 तथा राजपालसिंह, शिवेन्दरसिंह व रोशन मिंज ने एक-एक गोल किया।

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