उसकी आँखों में अर्जुन पुरस्कार विजेता बनने का सपना है। इसके लिए वह अपनी पूरी ऊर्जा झोंक देना चाहता है, लेकिन वह मजबूर है। उसकी प्रगति की राह में एक चीज आ़ड़े आ रही है। वह है धन। जी हां, हम बात कर रहे हैं मूक बधिर पहलवान वीरेंद्र सिंह की।
वीरेंद्र सिंह को 2009 में एक से 15 सितंबर तक चीनी-ताइपे में होने वाले 22वें बधिर ओलिम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना है। वीरेन्द्र 2005 में मेलबोर्न में हुए 21वें बधिर ओलिम्पिक में 84 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। इसके अलावा पिछले महीने अर्मेनिया में हुई दूसरी विश्व बधिर कुश्ती चैंपियनशिप में भी वीरेंद्र रजत पदक जीतने में सफल रहे।
लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि एक ओर बीजिंग ओलिम्पिक में कांस्य पदक विजेता सुशील कुमार को 'रुपयों से तौला' जा रहा है वहीं दूसरी ओर आज तक इस होनहार पहलवान को न तो भारत सरकार की ओर से और न ही औद्योगिक घरानों की ओर 'प्रोत्साहित' किया गया है, बल्कि वीरेंद्र ने अब तक जितनी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया है उन सभी में लगने वाले धन की व्यवस्था भी उसे खुद ही करनी प़ड़ी है।
पिता अजित सिंह अपनी सारी जमा पूँजी अपने बेटे को आगे ब़ढ़ाने के लिए खर्च कर चुके हैं। अब आगे की तैयारियों के लिए उनको बहुत परेशानियों का सामना करना प़ड़ रहा है। बधिर ओलिम्पिक होने में अभी लगभग 11 माह का समय शेष है।
इस दौरान पहलवान को अपनी तैयारियों के लिए जिस सबसे ज्यादा चीज की जरूरत होती है वह उसकी डाइट। अजित सिंह और कोच महासिंह राव के अनुसार वीरेंद्र की डाइट पर प्रतिमाह लगभग आठ से दस हजार रुपए का खर्च आ रहा है।
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में हेड कांस्टेबल अजित सिंह का वेतन इतना नहीं है कि वे अपने बेटे की तैयारियाँ आसानी से पूरी करा सकें। इसके लिए वे कई सामाजिक संगठनों से भी मिल चुके हैं। हालाँकि आश्वासन तो कई ओर से मिला है लेकिन परिणाम अभी तक शून्य ही है। इसके बावजूद वीरेंद्र और उसके परिवार का हौसला बुलंद है।
वीरेंद्र की कोशिश है कि वह 22वें बधिर ओलिम्पिक में भी भारत के लिए स्वर्ण पदक जीते ताकि विकलांग वर्ग में उन्हें भारत सरकार की ओर से अर्जुन पुरस्कार मिल सके। इसके लिए वह महासिंह राव की देखरेख में कुश्ती के गुर सीख रहा है।
लेकिन रुपए की कमी यदि जल्द पूरी नहीं हुई तो संभव है इस पहलवान का सपना अधूरा रह जाए। वैसे दिल्ली कुश्ती संघ ने भी वीरेंद्र को पदक दिलाने में आने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए कमर कसी है।
डीडब्ल्यूए के चेयरमैन अशोक अग्रवाल ने कहा है कि वह वीरेंद्र की तैयारियों को लेकर बहुत संजीदा हैं और कोशिश कर रहे हैं कि अगले दस-पंद्रह दिनों के भीतर कम से कम एक लाख रुपए की आर्थिक सहायता का इंतजाम इस खिलाड़ी के लिए करवा सकें। हालाँकि इतनी रकम भी वीरेंद्र की तैयारियों के लिए काफी नहीं है क्योंकि तैयारी से लेकर प्रतियोगिता में भाग लेने तक का खर्च कहीं ज्यादा है।