-जनकसिंह झाला
भारत ने पहले फुटबॉल में नेहरू गोल्ड कप, फिर हॉकी में एशिया कप, क्रिकेट में ट्वेंटी-20 विश्वकप और अब शतरंज में विश्वनाथन आनंद ने विश्व विजेता बनकर भारतीय परचम लहरा दिया है। शतरंज की दुनिया में सबको मात देने वाले विश्वनाथन आनंद ने दोबारा विश्व विजेता बनके साबित कर दिया है कि भारत किसी भी मामले में पीछे नहीं।
11 दिसंबर 1969 को चेन्नई में जन्में और महज छ साल की उम्र में शतरंज की बिसात पर अपने जौहर दिखाने प्रारंभ कर दिए थे। ऐसा कोई भी खिताब उनसे नहीं चूका, जिसके लिए खिलाड़ी पूरी उम्र झोंक देते हैं।
आनंद ने मैक्सिको में खेली गई तीन लाख 60 हजार अमेरिकी डॉलर इनामी राशि वाली वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप जीतने के साथ ही यह साबित कर दिया कि शतरंज की दुनिया में भारत को टक्कर देने के लिए दिग्गजों को लंबा इंतजार करना होगा।
इस टूर्नामेंट में जब आनंद ने हंगरी के ग्रैंडमास्टर पीटर लेको के साथ बाजी ड्रॉ खेल विश्व शतरंज चैंपियनशिप खिताब पर दूसरी बार कब्जा जमाया तो उनके लिए चारों तरफ से बधाईयों का ताँता लग गया।
दूसरी बार विश्व चैंपियन का प्रतिष्ठित खिताब जीतने के साथ ही आनंद ने अपने करियर में दूसरी बार 2800 ईएलओ अंको के जादुई आँकड़े को भी छू लिया। यह खिताब जीतकर उन्होंने भारत का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया।
शतंरज के इस शहंशाह के शतरंज करियर की शुरुआत 1983-84 से हुई जब उन्होंने सब जूनियर राष्ट्रीय शतरंज चैम्पियनशिप में 9 में से 9 अंक अर्जित करके तहलका मचा दिया और इस सफलता के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जैसे-जैसे समय गुजरता गया आनंद के जरिए विश्व शतरंज की बिसात पर तिरंगा लहराता चला गया।
1984 मे वर्ल्ड सब-जूनियर चैंपियनशिप मे उन्होंने कांस्य पदक जीता और 1983-84 में वह एशियन जूनियर (अंडर 19) चैंपियन बने। आनंद सफलताओं की सीढि़याँ कितनी तेजी से चढ़ रहे थे, इसका अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि 15 साल की उम्र में वे इंटरनेशनल मास्टर भी बन चुके थे।
आनंद 1986 में 16 वर्ष की आयु में नेशनल चैंपियन बने फिलीपाईन्स के बेगिओ शहर में वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप का आयोजन हुआ था तब आनंद खिताब जीतने वाले प्रथम एशियाई बने थे।
1987 में उन्होंने ग्रैंडमास्टर नार्म हासिल किया। इटली में वर्ष 1991 में आयोजित रेजिओ एमेलिया टूर्नामेंट में गैरी कास्पारोव और अनातोली कारपोव को पीछे छोड़कर आनंद चैपियन बने थे।
1995 में पीसीए रैंकिंग लिस्ट में वे दूसरे स्थान पर रहे थे। आनंद शतरंज जगत की सबसे कठिन मानी जाने वाली लिनारेस शतरंज प्रतियोगिता में वर्ष 1998 में विजेता बने थे। उसी वे वर्ष वर्ल्ड रैंकिंग में दूसरे स्थान पर पहुँचे थे। प्रतिष्ठित कोरस चेस टूर्नामेंट लगातार पाँच बार जीतने वाले आनंद का रिकॉर्ड अटूट है।
भारत के इस निर्विवाद चैंपियन ने वर्ष 2000 में तेहरान में एलेक्सी शिरोव को हराकर 15वें विश्व चैम्पियन का ताज पहना। यह उनके करियर का स्वर्णकाल रहा। शिरोव को परास्त करके उन्होंने शतरंज में रूसी खिलाड़िओ के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया था।
आनंद ने 2000 में पहला और 2002 में आयोजित दूसरा फीडे वर्ल्ड कप भी जीता। आनंद डोर्टमंड, मैंज, विज्क, ऑन झी, जिओन व कोरिस्का मास्टर्स खिताब भी जीत चुके हैं। अब तक दस बार मैन्ज मास्टर्स टूर्नामेंन्ट जीतने का सम्मान भी उन्हें मिला है। इसके अलावा आनंद को एगोन मेन वि. कम्प्यूटर शतरंज इवेन्ट में छह कम्प्यूटर से एक साथ खेलने व 4-2 से जीत दर्ज करने का गौरव भी प्राप्त है।
भारत सरकार ने आनंद को वर्ष 1985 में अर्जुन पुरस्कार, 1987 में पद्मश्री, 1991 में राजीव गाँधी खेलरत्न अवॉर्ड व 2000 में पद्म भूषण से सम्मानित किया। यही नहीं, आनंद अब तक चार बार शतंरज ऑस्कर पुरस्कार से भी नवाजे जा चुके हैं।
खिताब भले ही आनंद ने जीता है लेकिन आनंद के पिता विश्वनाथन और माँ सुशीला विश्वनाथन के साथ शतंरज की दुनिया के उनके तमाम दोस्त खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। वह बड़ी बेताबी से उनके स्वागत की प्रतिक्षा कर रहे है।
शतरंज का यह शहंशाह अक्टूबर के अंत मे भारत लौटेगा तब देखना यह है कि क्या भारत में उनका उसी तरह स्वागत होगा, जैसा लोगों ने ट्वेंटी-20 विश्वकप जीतने वाली भारतीय टीम का किया था?