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स्मृतियों में रचा-बसा इंदौर का टेबल-टेनिस

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, शनिवार, 12 जनवरी 2008 (17:03 IST)
- यशवंत पंतोज
इस वर्ष मप्र टेबल टेनिस संगठन जिसने इस अवधि में खेल को नए आयाम दिए, प्रतिभावान खिलाड़ियों, निर्णायकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की गतिविधियों में सहभागी बनाया, खिलाड़ियों को अच्छे पदों पर बैठाया, वह अपने 50 वर्ष पूरे कर रहा है।

मध्यप्रदेश बनते ही संगठन का मुख्यालय नागपुर से जबलपुर आया और 1965 के लगभग राहुल बारपुते एवं सुरेश गावड़े के प्रयासों से इंदौर जिला टेटे संगठन स्थापित हुआ और संगठन की सक्रियता राज्य संगठन को इंदौर ले आई। सम्प्रति संघ के आजीवन अध्यक्ष अभय छजलानी के अथक प्रयासों का मूर्तरूप 'अभय प्रशाल' के रूप में इंदौर में मौजूद है संघ की सक्रियता की जीती-जागती मिसाल बनकर।

50 के दशक में इंदौर और समीपवर्ती क्षेत्रों में टेबल टेनिस अपने बिखरे रूप में था। तब मैं भी एक जूनियर खिलाड़ी था। होलकर कॉलेज, क्रिश्चियन कॉलेज, मेडिकल स्कूल, एग्रीकल्चर कॉलेज में खेलने की टेबलें थीं। यशवंत क्लब व बंगाली क्लब की सदस्यता विशिष्ट वर्ग तक सीमित थी।

आगे चलकर मल्हार क्रीड़ा मंडल, महेश क्लब व विराम लॉज में सामान्यजन को खेलने के अवसर मिले। खेल के स्तर एवं अनुशासन को प्राथमिकता देने वाला माणिक भवन भी था। कर्नल नायडू का टेटे को जो योगदान मिला, उसे भी विस्मृत नहीं किया जा सकता।

जाल गोदरेज, प्रकाश नायडू, शरद तिवारी, बॉबजी नायडू, धनपालसिंह राठौर, केके बिसारिया, भाऊ निवसरकर, बापना बंधु, सुधीर इनामदार, आरके शर्मा, डॉ. प्रदीप सेठी एवं बाबूभाई चौरसिया उस दौर के प्रमुख खिलाड़ी थे।

कोच या कोचिंग जैसी व्यवस्था तब नहीं थी, यह व्यवस्था बाबूभाई चौरसिया के रूप में थी। जो भी उनके संपर्क में आया, उनकी सादगी व हरफनमौला स्वभाव से प्रभावित रहा। किसी को प्रैक्टिस देने से उन्होंने कभी मना नहीं किया। 'स्ट्राइप ट्रॉफी' उस समय की नियमित स्पर्धा थी। यशवंत क्लब में 'होलकर टीम' गठित की गई।

आगे चलकर मल्हार क्रीड़ा मंडल, महेश क्लब व विराम लॉज में सामान्यजन को खेलने के अवसर मिले। खेल के स्तर एवं अनुशासन को प्राथमिकता देने वाला माणिक भवन भी था।

कर्नल नायडू का टेटे को जो योगदान मिला, उसे भी विस्मृत नहीं किया जा सकता। जाल गोदरेज, प्रकाश नायडू, शरद तिवारी, बॉबजी नायडू, धनपालसिंह राठौर, केके बिसारिया, भाऊ निवसरकर, बापना बंधु, सुधीर इनामदार, आरके शर्मा, डॉ. प्रदीप सेठी एवं बाबूभाई चौरसिया उस दौर के प्रमुख खिलाड़ी थे।

कोच या कोचिंग जैसी व्यवस्था तब नहीं थी, यह व्यवस्था बाबूभाई चौरसिया के रूप में थी। जो भी उनके संपर्क में आया, उनकी सादगी व हरफनमौला स्वभाव से प्रभावित रहा। किसी को प्रैक्टिस देने से उन्होंने कभी मना नहीं किया। 'स्ट्राइप ट्रॉफी' उस समय की नियमित स्पर्धा थी। यशवंत क्लब में 'होलकर टीम' गठित की गई।

गाँधी हॉल में पाँच टेबलों पर राष्ट्रीय चैंपियनशिप खेली गई जिसमें मुख्य निर्णायक की भूमिका का निर्वाह टेटे के आद्य पुरुष रंगा रामानुजम ने निभाई। उचित संगठन के अभाव में होलकर टीम का भाग लेना अनियमित रहा। खेल की बिखरी गतिविधियों को निश्चित आकार देने का श्रेय मल्हार क्रीड़ा मंडल को जाता है। 1955 में आरंभ इस श्रृंखला में भोपाल, उज्जैन, ग्वालियर के खिलाड़ी आमंत्रित किए जाते थे।

उस समय रैली पर समय का प्रतिबंध नहीं था। कभी-कभी एक अंक के लिए रैली 10-10 मिनट तक चल जाती थी। मैच देर रात तक चलते रहते थे। डीडी शर्मा, मुकुंदरान धोड़े, आरके शर्मा, सलीम सिद्दीकी, तेजसिंह बापना, केके बिसारिया रैली में माहिर थे। पारू सिद्दीकी (उज्जैन), इकबाल हसन व ऐजाज शरीफ (भोपाल), एसके डे व चोपड़ा (ग्वालियर) का स्तर बहुत अच्छा था।

खेल लकड़ी के सादे पटिए या पिंपलखड के बैट से खेला जाता था अतः स्पिन का खेल में प्राधान्य था। 1952 के बाद स्पंज के उपयोग से स्पीड का पलड़ा भारी हो गया। वर्तमान रैकेट स्पीड और स्पिन में सामंजस्य बैठाने वाले हैं। उस समय स्पंज के बैट को पेन होल्ड ग्रिप से सही प्रयोग करने वाले डॉ. प्रकाश खांडेकर व निर्मल दोषी (भोपाल) थे।

महिलाएँ साड़ी पहनकर खेलतीं थीं व आक्रामक शैली से परहेज करती थीं। श्रीमती पोहेवाला, कुमुद दाते, लीला नायडू, सुधा सारंग पाणि, शकुंतला खांडेकर, नवीन शरीफ, वत्सला खोड़े का नाम उल्लेखनीय है।

वर्तमान में अभय छजलानी व सुरेश गावड़े के प्रयासों से देश के संगठनों में मप्र संगठन सबसे समृद्ध इकाई के रूप में जाना जाता है और दृढ़ निश्चयी खिलाड़ी के शिखर पर पहुँ चने के तमाम अवसर उपलब्ध हैं।

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