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गोल नहीं मिलने से 44 साल पुरानी यादें ताजा

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ब्लोमफोंटेन , सोमवार, 28 जून 2010 (19:17 IST)
यह गोल था जिसे नहीं माना गया और यह ऐसा फैसला था, जो विश्व कप में अब तक के सबसे रोमांचक मैच का परिणाम बदल सकता था।

इंग्लैंड के मिडफील्डर फ्रैंक लैंपार्ड ने बॉक्स के करीब से शॉट जमाया, जो जर्मनी के क्रॉसबार से लगकर तेजी से नीचे जमीन पर लगा और वापस बाहर आ गया।

उरुग्वे के रेफरी जार्ज लारिंडो ने खेल जारी रखने का संकेत दिया, लेकिन टेलीविजन रीप्ले से साफ हो गया कि गेंद गोल लाइन के अंदर गिरी थी। यदि यह गोल माना जाता तो 38वें मिनट में इंग्लैंड स्कोर 2-2 से बराबर कर देता।

इंग्लैंड के कोच फैबियो कापेलो ने अंतिम सोलह में अपनी टीम की जर्मनी के हाथों 4-1 से हार के बाद कहा यह महत्वपूर्ण मोड़ था। हम पाँच रेफरी के साथ खेल रहे थे और वे यह फैसला नहीं कर सके कि यह गोल है या नहीं।

यदि यह गोल होता तो मैच में काफी अंतर आता। यह लाइनमैन और रेफरी की गलती थी क्योंकि बेंच से मैंने भी देखा कि गेंद लाइन के अंदर गिरी है। रेफरी का यह फैसला विश्व कप 1966 के ठीक उलट था जबकि जर्मनी के विरोध के बावजूद इंग्लैंड को गोल दिया गया था।

लैंपार्ड का शॉट जब बार से टकराकर गोल के अंदर गिरा तो कापेलो ने खुशी मनानी शुरू कर दी थी, लेकिन जल्द ही वह काफुर हो गई। उन्होंने कहा यह गोल हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। हम इसके बाद अलग सोच से खेलते।

इस घटना से 1966 में वेम्बले में खेले गए विश्व कप फाइनल की यादें भी ताजा हो गई। तब इंग्लैंड और जर्मनी अतिरिक्त समय में 2-2 से बराबरी पर थे जब ज्योफ हर्स्ट का शॉट क्रॉसबार से लगकर नीचे गिरा और तेजी से वापस आ गया। तब रेफरी ने अपने लाइनमैन्स से सलाह मशविरा करके गोल दे दिया था।

हर्स्ट ने इसके बाद तीसरा गोल भी दागा और इंग्लैंड की 4-2 से जीत में अहम भूमिका निभाई थी। जर्मनी ने उस गोल का विरोध किया था और अब तक भी उसका मानना है कि वह गोल नहीं था।

इंग्लैंड हालाँकि रविवार को फ्री स्टेट स्टेडियम में बुरी तरह पराजित हो गया, लेकिन खिलाड़ी वह गोल नहीं दिए जाने से भी निराश थे, जो वास्तव में गोल था।

इंग्लैंड के गोलकीपर डेविड जेम्स ने कहा निश्चित तौर पर स्कोर लाइन निराशाजनक है। वह महत्वपूर्ण क्षण था। तब हमारी टीम काफी दबाव में थी और उस गोल से हम बराबरी पर आ जाते हैं और हम हाफ टाइम में अधिक सकारात्मक मूड के साथ जाते। (भाषा)

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