नई दिल्ली। भारत के सबसे सफल पैरा एथलीटों में से एक देवेन्द्र झाझरिया ने कहा कि कंधे की चोट के कारण वह मौजूदा एशियाई पैरा खेलों के बाद संन्यास लेने पर विचार कर सकते है।
सैतीस साल के इस भालाफेंक पैरा खिलाड़ी ने 2004 एथेंस पैरालंपिक खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया और फिर 2016 में रियो ओलंपिक में विश्व रिकार्ड के साथ अपनी इस सफलता को दोहराने में सफल रहे।
झाझरिया ने बताया मैं एशियाई पैरा खेलों के बाद अपने परिवार, कोच और दोस्तों से बात करके संन्यास लेने पर विचार करुंगा। मुझे यह विचार इस लिए आया क्योंकि मैं पिछले 18 महीने से कंधे की चोट से जूझ रहा हूं।
उन्होंने कहा, ‘मेरे कंधा चोटिल है और मैं उससे पूरी तरह से उबरने में सफल नहीं रहा हूं। मुझे यहां 11 अक्टूबर को प्रतियोगिता में भाग लेना है और जब भारत वापस जाउंगा तो संन्यास के बारे में सोचूंगा।’
उनसे जब 2020 पैरालंपिक में खेलने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘जैसा मैंने पहले कहा, मैं एशियाई खेलों के बाद ही यह फैसला कर सकता हूं कि 2020 तक खेल पाउंगा हूं या नहीं। तोक्यो में होने वाले पैरालंपिक के समय मेरी उम्र लगभग 40 साल होगी। इसलिए कोई फैसला लेने से पहले मुझे इससे से जुड़े लोगों से सलाह लेनी होगी।’
झाझरिया ने पैरालंपिक में दो स्वर्ण जीतने के साथ देश का सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार भी हासिल किया है। उन्होंने कहा, ‘मैंने 1995 में सामान्य एथलीटों के साथ खेलना शुरू किया। 2002 में पैरा एथलेटिक्स में मेरा करियर बुसान एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक के साथ शुरू हुआ। पिछले 16 वर्षों से मैं देश के लिए लगातार पदक जीत रहा हूं।’
उन्होंने कहा, ‘रियो ओलंपिक का स्वर्ण मेरे लिए सबसे बड़ा पदक है क्योंकि 12 साल बाद मैंने विश्व रिकार्ड तोड़ा था। 2004 ओलंपिक का स्वर्ण भी मेरे लिए खास है क्योंकि उस समय हमें कोई सुविधा नहीं मिलती थी।