23 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही आमिर खान की बहुचर्चित फिल्म 'दंगल' को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता है। इस फिल्म में आमिर खान और अन्य कलाकारों को कुश्ती के गुर सिखलाने वाले इंदौर के अंतरराष्ट्रीय पहलवान व भारतीय कुश्ती टीम के कोच कृपाशंकर ने अपने अनुभव साझा किए जो बेहद चौंकाने वाले हैं। आमिर के कोच ने कहा कि इस फिल्म के लिए उनके जुनून को देखकर मैं दंग रह गया। मैंने यह भी देखा कि किस तरह एक इंसान अपनी जान की बाजी तक लगाने से नहीं चूकता। अर्जुन अवॉर्डी कृपाशंकर ने 'दंगल' फिल्म के कलाकारों को किस तरह ट्रेनिंग और कोचिंग दी, पढ़िए उन्हीं की जुबानी...
पहली बार जब मुझे 'दंगल' फिल्म के लिए आमंत्रित किया और यह बताया गया कि मुझे हीरो और हीरोइन के साथ फिल्मी कलाकारों को कुश्ती सिखानी है तो मुझे हंसी आ गई क्योंकि बगैर ट्रेनिंग के एक एक्टर कुश्ती कैसे सीख सकता है? लेकिन जब ट्रेनिंग शुरू हुई, तब मैंने आमिर खान और अन्य कलाकारों में कुश्ती के प्रति जोश और जुनूर देखा। इसके बाद मुझे लगा कि यदि उन्हें ट्रेनिंग दी जाए तो ये कर सकते हैं।
आमिर खान ने कुश्ती के सीन या पंच एक टेक में ही किए। एक कोच होने के नाते मैं बहुत जल्दी संतुष्ट नहीं होता लेकिन पता नहीं कैमरा चालू होते ही इन कलाकारों को क्या हो जाता है, वे बहुत अच्छे से अपने किरदार को निभाने लग जाते हैं। आप जायरा वसीम को ही ले लीजिए..मैंने ट्रेनिंग के दौरान लगाना शुरू कर दिए..कैमरे लगते ही पता नहीं कहां से इन कलाकारों में ऊर्जा आ जाती थी।
रियो ओलंपिक की तैयारी के लिए मैं साक्षी मलिक को भी ट्रेनिंग दे रहा था और दूसरी तरफ 'दंगल' के फिल्मी कलाकारों को भी। इधर देश की स्टार पहलवान थीं तो दूसरी तरफ एक्टर.. हमने दोनों के लिए तमाम वही नियमों को लागू किया, जो नियम हम राष्ट्रीय कुश्ती के लिए लगाए जाने वाले कैंप में करते हैं। हां, फिल्मी कलाकारों के लिए थोड़ी शिथिलता बरती और यह सावधानी रखी कि कहीं कोई गंभीर चोट न लग जाए। फर्क सिर्फ इतना था कि साक्षी ओलंपिक की तैयारी कर रही थीं और ये कलाकार फिल्म के लिए कुश्ती के गुर सीख रहे थे...
ट्रेनिंग के दौरान मुझे आमिर खान का एक अलग ही रूप देखने को मिला। उनका व्यवहार बेहद सरल था और वे सभी को सम्मान देते थे। उनमें गजब की बात है, यदि वे बोल रहे हैं और आपने अपने मुंह से ओ शब्द भी निकाल दिया तो वे चुप हो जाते हैं और सामने वाले की बात सुनते हैं। उनमें सुनने की अद्भुत क्षमता है। वे एक स्टूडेंट होने के नाते मेरी हर बात मानते थे और जो भी तकनीक मैं सिखाता, उसका अभ्यास वो तब तक करते रहते थे, जब तक कि मैं 'ओके' न कर दूं।
मैं यह देखकर दंग रह गया कि एक व्यक्ति किरदार निभाने के लिए अपनी जान की बाजी भी लगा सकता है। उन्होंने फिल्म के लिए अपना वजन 70 किलोग्राम से बढ़ाकर 97 तक कर लिया और फिर वापस उसे कम भी किया। यह सब शरीर के लिए हानिकारक है, लेकिन आमिर खान का समर्पण काबिलेतारीफ है। उन्हें कितना संयम से रहना पड़ा होगा? ये 2-3 साल वे कैसे जीए होंगे? ये सब एक आम आदमी तो कर ही नहीं सकता...