नई दिल्ली:भारतीय पैरालम्पिक समिति पीसीआई की अध्यक्ष दीपा मलिक टोक्यो पैरालम्पिक के लिए खिलाड़ियों को तैयार कर रही हैं। अध्यक्ष की नई भूमिका ने भले ही दीपा मलिक को कमरे तक सीमित कर दिया है, लेकिन वह नई भूमिका से खुश है कि वह इसके माध्यम से दूसरे एथलीटों के लिए कुछ बदलाव लाने की कोशिश कर रही हैं।
पद्मश्री से सम्मानित और 2016 रियो पैरालंपिक में रजत पदक विजेता दीपा मलिक टोक्यो में होने वाले धरती के सबसे शानदार आयोजन के लिए ज्यादा से ज्यादा एथलीटों को प्रखर बनाने के लिए एक अलग भूमिका निभा रही हैं। रियो से पहले वह खेलों की दौड़ में खुद को तैयार करने में व्यस्त थी और अब उनके पास टोक्यो के लिए कमर कसने वाली पूरे भारतीय दल की जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा, “यह बहुत ही विडंबनापूर्ण है कि विकलांगता से योग्यता हासिल करने तक की यात्रा तब शुरू हुई, जब हर किसी ने मुझसे कहा कि मेरा जीवन एक कमरे में खत्म हो जाएगा। मैं कभी भी कमरे से बाहर नहीं जा पाऊंगी। तब मैंने कहा कि मैं एक कमरे में बंद होकर नहीं रहूंगी और बाहर निकल कर रहूंगी। चाहे वह तैराकी हो, बाइक चलाना या रैलिंग करना हो, मैं हमेशा मैदान पर रहती थी। लेकिन अध्यक्ष की जिम्मेदारी ने मुझे वापस एक कमरे में बैठा दिया है। मुझे बाहर के कई लोग आकर मिलते हैं। इसलिए मैं चाहती हूं कि मैं अंदर रहकर बाहर वालों को कुछ दे सकूं। वहां रहकर मैं उन्हें उपर उठाने के साथ और सशक्त बनाने में मदद कर सकती हूं।”
एक एथलीट के रूप में दो दशक के करीब बिताने के बाद उन्होंने एक अलग जिम्मेदारी निभाने का फैसला किया और फरवरी 2020 में भारत की पैरालंपिक समिति की अध्यक्ष चुनी गई। मलिक ने ओलंपिक चैनल को खेल प्रशासन में शामिल होने के पीछे के कारणों के बारे में कहा, “मैंने ज्यादातर पदक अपने देश के लिए एक जिम्मेदार एथलीट के रूप में जीते हैं।
मैंने एशियाई खेल, विश्व चैंपियनशिप जीती, रिकॉर्ड भी तोड़े और रियो में पैरालंपिक पदक जीता है। मैंने हमेशा खुद को खिलाड़ी से ज्यादा खेलों के लिए एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में माना है, जो एक बदलाव का नेतृत्व कर रहा है। जब भी मैंने पदक जीता तो मुझे लगा कि मैं बदलाव ला सकती हूं। इसने मुझे कुछ नीतियों को बदलने और पैरा-खेल के लिए कुछ जागरूकता पैदा करने के लिए मजबूर करूंगी। इसके पीछे मेरा मकसद था कि खेल जरिये कैसे लोग विकलांगता के साथ सशक्त बन सकते हैं।”(वार्ता)