नई दिल्ली। रियो पैरालंपिक खेल में शॉट पुट स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाली दीपा मलिक के अदम्य साहस की दास्तां बहुत लंबी है और वे सबसे मुश्किल माने जाने वाले मोटर स्पोर्ट्स तक में हिस्सा ले चुकी हैं।
दीपा मलिक देश की पहली अशक्त महिला है जिन्होंने फेडरेशन ऑफ मोटर स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया (एफएमएससीआई) से आधिकारिक लाईसेन्स हासिल किया है। वे देश की सबसे मुश्किल कार रैलियों में शुमार रेड-डि-हिमालय (2009) और डेजर्ट स्टॉर्म (2010) में क्रमश: नेवीगेटर और ड्राइवर के तौर पर हिस्सा ले चुकी हैं।
दीपा ने कहा कि मुझे याद है जब पहली बार पहले मुझे ट्यूमर हुआ था। लोग कहते थे कि मैं पूरी जिंदगी घर तक ही सिमट कर रह जाऊंगी और दैनिक जरुरतों के लिए मुझे नौकरों पर निर्भर रहना पड़ेगा लेकिन मैं इससे बाहर निकलना चाहती थी और मैंने तैराकी, मोटरस्पोर्ट्स, भाला फेंक और शॉट पुट में हिस्सा लिया। मेरा लक्ष्य मेरी कमजोरी से स्वतंत्र होना था। आज मुझे परिवार की तरफ से मेरे खेल को पूरा समर्थन मिल रहा है और मैं व्यक्तिगत तौर पर स्वतंत्र हो चुकी हूं।
दीपा को वर्ष 2014 में 42 वर्ष की आयु में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और वह यह पुरस्कार पानेवाली सबसे उम्रदराज खिलाड़ी बनी थी। उन्होंने वर्ष 2014 में इंचियोन में पैरा एशियाई खेलों में पदक हासिल किया था। रियो से पहले उन्होंने दोहा में आईपीसी ओसनिया एशियन चैंपियनशिप में भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता था और इसी प्रतियोगिता में शॉट पुट में रजत पदक जीता था। (वार्ता)