- सीमान्त सुवीर
इंदौर की गोताखोर धारणी तिवारी ने राष्ट्रीय स्कूल्स गोताखोरी में पहली बार हिस्सा लेकर जो रजत व कांस्य पदक जीते हैं, उसने उसके गुरुओं का सिर गर्व से ऊंचा किया ही है साथ ही अपने माता-पिता की उस मेहनत को भी सार्थक कर दिखाया है, जो उसके लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं।
देश में जब भी कोई खिलाड़ी अपने खेल को चुनता है तो सबसे पहले उसके माता-पिता की तपस्या की शुरुआत होती है, जो उन्हें खेल के मैदान पर ले जाकर गुरु को सौंपते हैं। धारणी तिवारी भी इसी दौर से गुजर रही है, जहां रोज सुबह उसके पिता पंकज और शाम को मां ममता साढ़े सात किलोमीटर का सफर तय करके कालानी नगर से नेहरू पार्क तरण पुष्कर पहुंचते हैं।
इसके बाद शुरू होती है धारणी की कोचिंग...सुबह वह घनश्याम सिंह हाड़ा की कोचिंग में रहती है जबकि शाम के वक्त रमेश व्यास उसे गोताखोरी के गुर सिखाते हैं। 13 साल की धारणी गोताखोरी से पहले ताइक्वाडो खेला करती थी और इसमें उसने अमृतसर और हरियाणा में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 2 स्वर्ण पदक भी जीते थे।
धारणी को ताइक्वांडो का शौक अपने बड़े भाई रितिक को देखकर लगा, जो इस वक्त ग्वालियर से फिजिकल एजुकेशन में बीई कर रहा है। चूंकि बॉक्सिंग में चेहरा चोटिल हुआ करता था, लिहाजा उसने दूसरा खेल चुना और वह था गोताखोरी।
असल में जब धारणी अपने पिता के साथ स्वीमिंगपूल पर आती थी तो खुद भी तैराकी किया करती थी। धारणी की डायविंग देखकर कोच घनश्याम हाड़ा ने कहा कि तुम्हें गोताखोरी का प्रशिक्षण लेना चाहिए...बस फिर क्या था...धारणी ने गोताखोरी को जुनून बना लिया और सुबह 2 घंटे और शाम 3 घंटे अभ्यास करना शुरु कर दिया।
महज एक साल के भीतर ही वह प्रतिभाशाली गोताखोर बन गई और उसने नेशनल स्कूल्स में 2 पदक भी हासिल कर डाले...धारणी ने अंडर 14 की एक मीटर गोताखोरी में रजत और 3 मीटर गोताखोरी में कांस्य पदक अपने नाम किया।
राजमोहल्ला स्थित वैष्णव बाल मंदिर में आठवीं की छात्रा धारणी ने कहा कि मैं सुबह साढ़े पांच बजे उठ जाती हूं और 6 से 8 बजे तक नेहरू पार्क तरण पुष्कर में अभ्यास करती हूं। ठंड में पानी जरूर ठंडा लगता है लेकिन प्रेक्टिस तो करनी ही पड़ती है। होमवर्क भी मैं स्कूल में ही उस वक्त कर लेती हूं, जब कोई खाली पीरियड होता है।
सातवीं कक्षा में बी1 ग्रेड लाने वाली धारणी के बहुत ऊंचे सपने हैं। वह देश की नंबर एक गोताखोर बनना चाहती है और फुर्सत के क्षणों में वह इंटरनेट पर ओलंपिक गोताखोरी के वीडियो देखा करती है ताकि अपनी तकनीक में सुधार कर सके।
कालानी नगर में 'सुर संगम' नाम से इलेक्ट्रॉनिक की दुकान चलाने वाले धारणी के पिता पंकज ने बताया कि बेटी पर गोताखोरी का जुनून सवार है, इसीलिए कड़कड़ाती ठंड में भी मैं इसे स्वीमिंगपूल तक लेकर जाता हूं और शाम को यह काम उसकी मां करती है। रमेश व्यास सर और हाड़ा सर मेरी बेटी के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं और ये जो दो पदक मध्यप्रदेश को मिले हैं, उसके सही हकदार वे दोनों ही हैं।
सही मायने में देखा जाए तो धारणी के गुरु रमेश व्यास मध्यप्रदेश की वो गोताखोरी हस्ती हैं, जिन्होंने कई विक्रम अवॉर्डी गोताखोर तैयार किए हैं, जिन्होंने देशभर में धूम मचाई है। गोताखोर तैयार करने में सरला सरवटे की तरह उन्होंने पूरा जीवन खपा दिया। सनद रहे कि सरला भी रमेश व्यास की ही कोचिंग में गोताखोरी के गुर सीखी थीं और 1982 के दिल्ली एशियाड में भारतीय गोताखोरी टीम की हिस्सा भी रही थीं।
धारणी अभी महज 13 साल की हैं और उसमें अभी से असीम संभावनाएं नजर आ रही हैं। नेशनल स्कूल के 2 पदकों ने उसके भीतर नया जोश भर दिया है...वो इसी तरह मेहनत करती रही तो एक दिन जरूर अपने माता-पिता के साथ दोनों गुरुओं का नाम रोशन करेगी, इसमें कोई शक नहीं है।