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साल 2016 ने लौटाए भारतीय हॉकी के सुनहरे दिन

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नई दिल्ली। भारतीय हॉकी के लिए वर्ष 2016 मील का पत्थर बन गया और इस साल ने भारतीय हॉकी के सुनहरे दिनों को लौटा दिया। भारतीय युवाओं ने 15 वर्ष बाद फाइनल में बेल्जियम को 2-1 से हराकर फिर विश्वकप अपने नाम किया।
                    
वर्षों से इंतजार किया जा रहा था और हर साल यह सवाल पूछा जाता था कि भारतीय हॉकी के सुनहरे दिन कब लौटेंगे। 2016 में इस लंबे इंतजार को अपने आखिरी छह महीनों में खत्म किया। इन छह महीनों में भारतीय हॉकी ने वो उपलब्धियां हासिल कीं, जो उसे पहले नहीं मिल पा रही थीं।
               
भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीमें एक साथ रियो ओलंपिक में खेलने उतरीं। इससे पहले भारतीय पुरुष सीनियर टीम ने एफआईएच चैंपियंस ट्रॉफी में पहली बार रजत पदक हासिल कर नया इतिहास बनाया। ओलंपिक के बाद भारतीय पुरुष और महिला टीमों ने एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी के खिताबों पर कब्जा किया।
              
भारत को साल की सबसे बड़ी उपलब्धि उस समय मिली, जब उसकी जूनियर टीम ने लखनऊ में 15 साल के अंतराल के बाद पुरुष जूनियर विश्वकप हॉकी खिताब जीतकर सुनहरा इतिहास रचा। युवा टीम ने वह कारनामा कर दिखाया, जो सीनियर टीम ने 1975 में एकमात्र बार विश्वकप जीतकर किया था। भारतीय युवाओं ने 2001 में विश्वकप जीता था और उसके 15 वर्ष बाद फाइनल में बेल्जियम को 2-1 से हराकर फिर विश्वकप अपने नाम किया।
                
भारत को मैदान में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशासनिक तौर पर भी बड़ी कामयाबी उस समय हासिल हुई जब हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नरेंद्र ध्रुव बत्रा को अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) का नया अध्यक्ष चुन लिया गया। बत्रा यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय बने।
 
कोच रोलैंट ओल्टमैंस की अगुवाई में भारत पहली बार लंदन में हुई चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में पहुंचा, लेकिन खिताबी मुकाबले में उसे चिर प्रतिद्वंद्वी ऑस्ट्रेलिया से 1-3 से हार का सामना करना पड़ा। भारत को रजत से संतोष करना पड़ा, लेकिन यह रजत पदक भी भारत की बड़ी कामयाबी रही।
                   
भारतीय टीम इस कामयाबी के दम पर रियो ओलंपिक में अच्छे प्रदर्शन के इरादे से उतरी लेकिन उसे क्वार्टर फाइनल में बेल्जियम के हाथों 1-3 से हार का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही भारत का ओलंपिक में पदक जीतने का सपना टूट गया। भारतीय महिला टीम अपने ग्रुप में आखिरी स्थान पर रही। महिला टीम के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि रही कि उसने 36 साल के लंबे अंतराल के बाद ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया।
                   
भारतीय सीनियर पुरुष टीम ने मलेशिया में हुई एशियन पुरुष चैंपियंस ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन करते हुए चिरप्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 3-2 से हराकर स्वर्ण पदक हासिल किया। भारतीय महिला टीम ने भी पुरुष टीम की राह पर चलते हुए सिंगापुर में पांच टीमों की एशियन महिला चैंपियंस ट्रॉफी में चीन को 2-1 से हराकर खिताब जीता।
                  
भारत को सबसे बड़ी उपलब्धि साल के आखिर में युवा तुर्कों ने दिलाई जिन्होंने गजब का प्रदर्शन करते हुए लखनऊ में बेल्जियम को 2-1 से पराजित कर 15 साल के लंबे अंतराल के बाद जूनियर विश्व कप हॉकी चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। 
 
भारत ने इससे पहले एकमात्र बार 2001 में अर्जेंटीना का हराकर जूनियर विश्व कप जीता था। उसके 15 साल बाद भारतीय युवा टीम ने अपनी मेजबानी में विश्व कप जीतकर एक नया इतिहास बना दिया। कोच हरेन्द्र सिंह के मार्गदर्शन वाली युवा टीम को विजेता बनाने में गुरजंत सिंह और सिमरनजीत सिंह का बहुमूल्य योगदान रहा। गुरजंत ने आठवें मिनट और सिमरनजीत ने 22वें मिनट में महत्वपूर्ण गोल किए।
          
प्रशासनिक स्तर पर भारत को एक बड़ी कामयाबी उस समय हासिल हुई जब 12 नवंबर को हॉकी इंडिया (एचआई) के अध्यक्ष नरेन्द्र ध्रुव बत्रा को अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) का नया अध्यक्ष चुन लिया गया। वे इस पद पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बने।
          
59 वर्षीय बत्रा की देश में दिग्गज खेल प्रशासक के रूप में छवि है। वे एचआई के अध्यक्ष के अलावा एफआईएच के कार्यकारी बोर्ड के सदस्य होने के साथ-साथ एशियाई हॉकी महासंघ के उपाध्यक्ष भी थे। उन्हें दुबई में एफआईएच की 45वीं कांग्रेस के दौरान बहुमत से शीर्ष पद के लिए चुना गया। उन्होंने लिएंड्रो नेग्रे की जगह ली।
          
बत्रा ने अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में आयरलैंड के डेविड बालबर्नी को और ऑस्ट्रेलिया के केन रीड पर श्रेष्ठता साबित करते हुए यह पद हासिल किया। चुनाव में बत्रा को कुल 118 मतों में 68 वोट मिले जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वियों डेविड तथा रीड को क्रमश: 29 तथा 17 मत ही मिले। वे एफआईएच के 12वें अध्यक्ष बने और इस पद तक पहुंचने वाले पहले एशियाई बने। (वार्ता) 

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