कृपाशंकर बिश्नोई (अर्जुन अवॉर्डी)
महिला पहलवान नवजोत कौर ने सीनियर एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह यह पदकजीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं, लेकिन यह सब इतना आसान नहीं रहा। उनकी सफलता के पीछे उनके पूरे परिवार का त्याग और अथक मेहनत भी छिपी है। उनके पिता ने कर्ज ले-लेकर अपनी बेटी को आगे बढ़ाया। इतना ही नहीं, भाई-बहन ने नवजोत के लिए अपना करियर तक दांव पर लगा दिया।
कर्ज लेकर पिता ने की मदद : नवजोत के पिता सुखचैन सिंह पंजाब के तारन में किसानी करते हैं। बेटी को सरकार की तरफ से कोई खास मदद नहीं मिल रही थी। ऐसे में पिछले लगभग दस सालों से वह कर्ज ले लेकर अपनी बेटी की ट्रेनिंग में मदद कर रहे थे। साल बीतते-बीतते कर्ज तकरीबन 13 लाख रुपए पहुंच गया है।
कर्ज से झुके पिता के कंधे बीते शुक्रवार को तन गए होंगे क्योंकि उस दिन बेटी ने सीनियर एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास बना दिया था। नवजोत की जीत से पिता काफी खुश हैं। उन्होंने कहा, 'हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है, उसने देश का गौरव बढ़ाया है। अब मैं चाहता हूं कि वह देश के लिए ओलिंपिक पदक लाए।'
उल्लेखनीय है कि सुखचैन ने ही अपनी दोनों बेटी (नवजोत और नवजीत) को कुश्ती के लिए तैयार किया था। उस वक्त पूरा गांव इस खेल को लड़कियों के लिए सही नहीं मानता था।
नवजोत ने किर्गिस्तान के बिश्केक में हुई एशियाई चैंपियनशिप में महिलाओं की 65 किग्रा फ्री स्टाइल कैटिगरी के फाइनल में जापान की मिया इमाई को 9-1 से मात देकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। भारतीय महिलाएं इससे पहले 13 बार फाइनल तक पहुंची, लेकिन जीत नहीं पाईं। नवजोत भी 2013 में फाइनल में पहुंची थीं, लेकिन तब वह हार गई थीं। तब उन्हें जापान की मिया इमाई ने ही हराया था।
परिवार सरकार से खफा : परिवार को मेडल की खुशी के साथ-साथ इस बात का अफसोस भी है कि सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की। नवजोत की बहन नवजीत ने बताया कि 2014 में नवजोत की कलाई में चोट लग गई थी, उसके बाद दो सालों तक कुश्ती से दूर रहीं थीं। ऐसे में उनके लिए वापसी करना काफी मुश्किल था। नवजीत ने बताया कि उस वक्त सरकार ने कोई मदद नहीं की थी और उनके पिता ने ही कर्ज लेकर सब किया।
क्रिकेटर हरमनप्रीत पर निशाना : नवजोत की बहन ने इशारों-इशारों में क्रिकेटर हरमनप्रीत कौर के जरिए राज्य सरकार पर निशाना साधा। नवजीत ने कहा, 'सरकार को सभी खिलाड़ियों के साथ एक जैसा बर्ताव करना चाहिए। एक महिला क्रिकेटर को डीएसपी बना दिया गया वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती में मेडल जीतने वाली क्लर्क है। यह भेदभाव है।'
सनद रहे कि नवजोत ने 2014 में ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीता था। उसके बात उन्हें रेलवे में सीनियर क्लर्क बनाया गया था। उनकी बहन नवजीत (32 साल) भी कुश्ती करती थीं, लेकिन चोटों से परेशान होकर उन्होंने कुश्ती छोड़ दी थी। उनके भाई युवराज (23 साल) अच्छा क्रिकेट खेलते थे, लेकिन उन्होंने भी अपने पिता और बहन नवजोत की मदद के लिए खेल छोड़कर किसानी शुरू कर दी थी।
नवजीत ने बताया कि महिला पहलवान को अपने ऊपर काफी खर्च करना पड़ता है लेकिन नवजोत के पास उतने पैसे नहीं होते थे। नवजीत ने कहा, 'एक इंटरनैशनल महिला रेसलर को हर महीने लगभग एक लाख रुपए ट्रेनिंग, किट, डाइट, विदेश खेलने जाने के लिए चाहिए होते हैं, लेकिन नवजोत कुल 50 हजार रुपए में सब करती थीं।'