Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

'ड्रिब्लिंग के जादूगर' मोहम्मद शाहिद का निधन

हमें फॉलो करें 'ड्रिब्लिंग के जादूगर' मोहम्मद शाहिद का निधन
गुरुग्राम , बुधवार, 20 जुलाई 2016 (18:30 IST)
नई दिल्ली। भारत की 1980 के मॉस्को ओलंपिक में आखिरी बार हॉकी स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम के सदस्य और 'ड्रिब्लिंग के जादूगर' कहे जाने वाले मोहम्मद शाहिद का गुडगांव के एक अस्पताल में बुधवार सुबह निधन हो गया। शाहिद 56 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से लिवर की बीमारी से जूझ रहे थे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय खेलमंत्री विजय गोयल और हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नरेन्द्र ध्रुव बत्रा ने शाहिद के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। शाहिद के निधन से खेल जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। शाहिद के गुडगांव के अस्पताल में भर्ती होने के बाद से ही उनके प्रशंसक उनके जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थनाएं और दुआएकर रहे थे, लेकिन बुधवार सुबह उनके निधन के साथ ही जैसे पूरा खेल जगत खामोश हो गया।
 
शाहिद के निधन से भारतीय हॉकी का एक सुनहरा अध्याय भी समाप्त हो गया है। दुनिया के बेहतरीन फॉरवर्डों में शुमार और ड्रिब्लिंग के बेताज बादशाह माने जाने वाले शाहिद 1980 के मॉस्को ओलंपिक में आखिरी बार ओलंपिक स्वर्ण जीतने वाली हॉकी टीम के सदस्य थे। वे 2 बार एशियाई खेलों 1982 और 1986 में पदक जीतने वाली भारतीय टीम के भी सदस्य थे। 
webdunia
उत्तरप्रदेश के वाराणसी में जन्मे शाहिद को 1980 की चैंपियंस ट्राफी में सर्वश्रेष्ठ फॉरवर्ड चुना गया था और वे 1986 में ऑल स्टार एशियन टीम के सदस्य चुने गए थे। उन्हें 1980-81 में अर्जुन पुरस्कार तथा 1986 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
 
14 अप्रैल 1960 को वाराणसी में जन्मे शाहिद ने बुधवार सुबह गुडगांव के एक निजी अस्पताल में करीब 10 बजकर 45 मिनट पर अंतिम सांस ली। उन्हें उपचार के लिए वाराणसी से इस अस्पताल लाया गया था और रेलवे तथा सरकार ने उनके इलाज के लिए मदद दी थी, लेकिन उनकी सेहत बराबर गिरती चली गई जिसके बाद उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था।
 
शाहिद के पार्थिव शरीर को वापस उनके गृहनगर वाराणसी ले जाया जाएगा, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। शाहिद को पेटदर्द की शिकायत के बाद जून के आखिर में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित एसएसएल अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन उनकी हालत बिगड़ती देख दिल्ली लाया गया और उन्हें गुडगांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 3 सप्ताह बाद उनका निधन हो गया। उनके परिवार में पत्नी परवीन शाहिद और 2 बच्चे मोहम्मद सैफ और हिना शाहिद हैं।
 
रेलवे में खेल अधिकारी के रूप में कार्यरत शाहिद के इलाज के लिए रेलवे और केंद्रीय खेल मंत्रालय ने आर्थिक मदद दी थी। शाहिद से रियो में देश का प्रतिनिधित्व करने जा रही भारतीय हॉकी टीम और खेलमंत्री विजय गोयल ने भी हाल ही में मुलाकात की थी। 
 
वर्ष 1980 के मॉस्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक और 1982 तथा 1986 के एशियाई खेलों में पदक दिलाने वाले शाहिद का जन्म 14 अप्रैल 1960 को उत्तरप्रदेश के वाराणसी में हुआ था। उन्होंने मात्र 19 वर्ष की आयु में ही 1979 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी में अपना पदार्पण कर लिया था। वे पहली बार जूनियर विश्व कप में फ्रांस के खिलाफ उतरे थे और उन्होंने अपनी प्रतिभा को उसी समय साबित कर दिया था।
 
शाहिद ने इसके बाद मलेशिया में 4 राष्ट्रों के टूर्नामेंट के दौरान वाहवाही बटोरी। देश के बेहतरीन ड्रिब्लर शाहिद अपनी इसी प्रतिभा के दम पर वर्ष 1980 की ओलंपिक टीम का हिस्सा बने और भारत को ओलंपिक हॉकी में आखिरी स्वर्ण पदक दिलाया। उनके इस प्रदर्शन के लिए वर्ष 1980-81 में अर्जुन अवॉर्ड और फिर 1986 में पद्मश्री से नवाजा गया। 
 
इस दिग्गज खिलाड़ी का खेल तेज गति और अपनी शानदार ड्रिब्लिंग से विपक्षी डिफेंडरों को छकाने के लिए जाना जाता था। शाहिद अपनी जगह खड़े-खड़े 3-4 डिफेंडरों को चकमा देने के लिए मशहूर थे। उनके इसी खेल के हजारों-लाखों प्रशंसक हुए और उन्हें 'ड्रिब्लिंग के जादूगर' का खिताब मिला। शाहिद ने 1985-86 के सत्र में भारत की कप्तानी भी की थी। खेल से संन्यास के बाद शाहिद रेलवे में कार्यरत थे और अपने गृहनगर वाराणसी में रह रहे थे।
 
शाहिद और जफर इकबाल की जोड़ी को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। इन दोनों का तालमेल विपक्षी टीमों में दहशत पैदा करता था, खासतौर पर एशियाई खेलों के दौरान दोनों खिलाड़ियों का प्रदर्शन काबिलेतारीफ रहा था। 
 
शाहिद से कुछ दिन पहले अस्पताल मिलने पहुंचे जफर अपने जोड़ीदार के निधन पर स्तब्ध हैं। जफर ने शाहिद के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि यह मेरे लिए सबसे बड़े दुख की घड़ी है। वे मेरे सबसे करीबी टीम साथी थे और हम मिलकर कई वर्ष साथ खेले थे।
 
शाहिद के पूर्व ओलंपिक टीम साथी एमएम सौमाया ने भी भरे हुए शब्दों में कहा कि मेरे लिए यह यकीन करना मुश्किल है कि शाहिद अब नहीं रहे। 80 के दशक में उनके खेल के लाखों दीवाने थे। उनके खेल को देखना ही बड़े सौभाग्य की बात थी। शाहिद और जफर की जोड़ी कमाल की थी। जफर की गजब की तेजी और शाहिद की ड्रिब्लिंग ने भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयां दी थीं।
 
भारतीय टीम का रियो ओलंपिक में नेतृत्व करने जा रहे गोलकीपर पीआर श्रीजेश, राष्ट्रीय बैडमिंटन टीम के कोच पुलेला गोपीचंद और देश के खिलाड़ियों ने हॉकी के इस जादूगर के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। 
 
गोपीचंद ने कहा कि मुझे यह खबर सुनकर गहरा झटका लगा है। यह हमारे लिए ही नहीं बल्कि पूरे खेल जगत के लिए बड़ी क्षति है। शाहिद हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक थे और उन्होंने अपने खेल से देश को गौरवान्वित किया था।
 
श्रीजेश ने कहा कि मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं। हमने हाल ही में उनसे मुलाकात की थी और उस समय उनकी हालत बहुत गंभीर थी। भारतीय हॉकी के लिए यह बहुत बड़ी क्षति है। (वार्ता) 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ड्रॉ नहीं बल्कि दबाव में जीतना मायने रखता है : गोपीचंद