नई दिल्ली:ओलंपिक कांस्य पदक विजेता भारतीय हॉकी टीम के अहम सदस्य रहे स्टार ड्रैग फ्लिकर रूपिंदर पाल सिंह ने युवाओं के लिये रास्ता बनाने की कवायद में अंतरराष्ट्रीय हॉकी से तुरंत प्रभाव से संन्यास लेने की घोषणा की है।
देश के सर्वश्रेष्ठ ड्रैग फ्लिकर में शामिल किए जाने वाले 30 साल के रूपिंदर ने 223 मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
बॉब के नाम से मशहूर रूपिंदर ने तोक्यो ओलंपिक में भारत के कांस्य पदक जीतने के अभियान के दौरान चार गोल दागे थे जिसमें तीसरे स्थान के प्ले आफ में जर्मनी के खिलाफ पेनल्टी स्ट्रोक पर किया गोल भी शामिल था।
रूपिंदर का यह फैसला हैरानी भरा है क्योंकि उनकी फिटनेस और फॉर्म को देखते हुए स्पष्ट तौर पर वह कुछ ओर साल आसानी से खेल सकते थे।
रूपिंदर ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर बयान मे लिखा ,इसमें कोई संदेश नहीं कि पिछले कुछ महीने मेरे जीवन के सर्वश्रेष्ठ दिन रहे। मैंने अपने जीवन के कुछ शानदार अनुभव जिनके साथ साझा किए टीम के अपने उन साथियों के साथ तोक्यो में पोडियम पर खड़े होना ऐसा अहसास था जिसे मैं हमेशा सहेजकर रखूंगा।
उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि अब समय आ गया है जब युवा और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उस आनंद की अनुभूति का अवसर दिया जाए जो भारत के लिए खेलते हुए मैं पिछले 13 साल से अनुभव कर रहा हूं ।पंजाब के फरीदकोट से तोक्यो में पोडियम तक के सफर के दौरान रूपिंदर ने कड़ी मेहनत और कई बार वापसी की।
मई 2010 में इपोह में सुल्तान अजलन शाह कप में अंतरराष्ट्रीय पदार्पण के बाद से रूपिंदर भारत की रक्षापंक्ति के अहम सदस्य रहे और वीआर रघुनाथ के साथ मिलकर उन्होंने खतरनाक ड्रैग फ्लिक संयोजन बनाया।निडर रक्षण के अलावा रूपिंदर पर उनके कप्तान पेनल्टी कॉर्नर और पेनल्टी स्ट्रोक पर गोल करने के लिए भी काफी भरोसा करते थे।
रूपिंदर की मजबूत कद-काठी और लंबाई पेनल्टी कॉर्नर के समय किसी भी टीम के डिफेंस को परेशान करने के लिए पर्याप्त थी। उन्हें अपने चतुराई भरे वैरिएशन के लिए भी जाना जाता था।
रूपिंदर को 2014 विश्व कप में भारतीय टीम का उप कप्तान बनाया गया और वह इसी साल राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने वाली भारतीय टीम का भी हिस्सा रहे।
रूपिंदर उस भारतीय टीम का भी हिस्सा रहे जिसने 2014 इंचियोन एशियाई खेलों में स्वर्ण और 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता।एशियाई खेलों में निराशा के बाद रूपिंदर को बलि का बकरा भी बनाया गया और इसके बाद टीम के हुए बदलाव के दौरान उनकी अनदेखी की गई।
वह चोटों से भी परेशान रहे। पैर की मांसपेशियों में समस्या के कारण 2017 में उनका करियर लगभग खत्म ही हो गया था। इस समय को उन्होंने अपने करियर का सबसे मश्किल समय करार दिया था।
चोट के कारण उनके छह महीने तक बाहर रहने का सबसे अधिक फायदा हरमनप्रीत को मिला लेकिन उनकी सफल वापसी के बाद ये दोनों शॉर्ट कॉर्नर पर भारत के ट्रंप कार्ड बने और इनकी जोड़ी तोक्यो तक बनी रही।
रूपिंदर ने अपने करियर की सबसे बड़ी सफलता इस साल तोक्यो खेलों में हासिल की।
उन्होंने कहा, मुझे 223 मैचों में भारत की जर्सी पहनने का सम्मान मिला और इसमें से प्रत्येक मैच विशेष रहा। मैं खुशी के साथ टीम से जा रहा हूं और संतुष्ट हूं क्योंकि हमने सबसे बड़ा सपना साकार कर लिया जो भारत के लिए ओलंपिक में पदक जीतना था।
उन्होंने कहा, मैं अपने साथ विश्व हॉकी के सबसे प्रतिभावान खिलाड़ियों के साथ खेलने की यादें ले जा रहा हूं और इनमें से प्रत्येक के लिए मेरे दिल में काफी सम्मान है।
रूपिंदर ने कहा, इतने वर्षों में टीम के मेरे साथियों ने मेरा समर्थन किया और मैं भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए उन्हें शुभकामनाएं देता हूं।रूपिंदर ने अपनी सफलता का श्रेय अपने मित्रों और परिवार, विशेषकर अपने माता-पिता को दिया।
उन्होंने कहा, मैंने आज जो सफलता हासिल की है वह मेरे मित्रों और परिवार, विशेषकर मेरे माता और पिता के समर्थन और हौसलाअफजाई के बिना संभव नहीं होती। मैं प्रत्येक मैच में उतरते हुए उनके बारे में सोचता था।
रूपिंदर ने हॉकी इंडिया और उनके करियर को निखारने में भूमिका निभाने वाले सभी को धन्यवाद दिया।
उन्होंने कहा, मैं इतने वर्षों तक मुझ पर भरोसा करने के लिए हॉकी इंडिया को धन्यवाद देता हूं। मैं फिरोजपुर की बाबा शेरशाह वली अकादमी और कोच का भी धन्यवाद देता हूं जहां मेरी हॉकी की यात्रा शुरू हुई। मैं फरीदकोट के मेरे कोच और मित्रों को भी धन्यवाद देता हूं जहां की युवा खिलाड़ी के रूप में मेरी कुछ अच्छी यादें हैं।
रूपिंदर ने कहा, में कोच दिवंगत जसबीर सिंह बाजवा, ओपी अहलावत और चंडीगढ़ हॉकी अकादमी के अपने मित्रों को भी धन्यवाद देता हूं जिन्होंने एक खिलाड़ी के रूप में मेरे शुरुआती वर्षों में बड़ी भूमिका निभाई।
119 गोल करने वाले रुपिंदर पाल सिंह ने टोक्यो ओलंपिक में भारत की कांस्य पदक जीत में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने जर्मनी के खिलाफ पेनल्टी स्ट्रोक को गोल में तब्दील किया था। जिससे भारत 41 साल बाद ओलंपिक हॉकी का ब्रॉन्ज मेडल जीत पायी थी।
बीरेंद्र लाकड़ा ने भी लिया संन्यास
रूपिंदर पाल सिंह के बाद ओलंपिक कांस्य पदक विजेता भारतीय हॉकी टीम के अनुभवी डिफेंडर बीरेंद्र लाकड़ा ने गुरूवार को अंतरराष्ट्रीय हॉकी से तुरंत प्रभाव से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया।लाकड़ा के संन्यास की घोषणा हॉकी इंडिया ने ट्विटर पर की।
हॉकी इंडिया ने ट्वीट किया , मजबूत डिफेंडर और भारतीय हॉकी टीम के सबसे प्रभावी खिलाड़ियों में से एक ओडिशा के स्टार लाकड़ा ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने का फैसला लिया है। हैप्पी रिटायरमेंट बीरेंद्र लाकड़ा।
31 वर्ष के लाकड़ा इंचियोन एशियाई खेल 2014 में स्वर्ण पदक और 2018 जकार्ता खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य थे।