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सरला सरवटे जैसी गोताखोर कभी रिटायर नहीं होतीं...

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सीमान्त सुवीर

कल जब सरकारी वित्त वर्ष का आखिरी रोज होगा, तब देश की ख्यात गोताखोर सरला सरवटे के नेहरू पार्क तरण पुष्कर में 37 बरस की सेवा का भी अंतिम दिवस होगा। 31 मार्च को पानी से सदैव तरोताजा रहने वाले नेहरू पार्क स्वीमिंग पूल पर सरला की विदाई का क्षण वाकई भावुक करने वाला होने जा रहा है। 37 साल का वक्त कोई कम नहीं होता, वह भी ऐसी खिलाड़ी के लिए जिसने पानी को ही अपनी जिंदगी का असली मकसद मान लिया था और अच्छे तैराक व गोताखोर तैयार करने की गरज से विवाह तक नहीं किया। इंदौर नगर निगम भले ही सरला को सम्मानजनक विदाई न दे, लेकिन देश-विदेश में जो भी लोग सरला को जानते हैं, वे उनके समर्पण, त्याग और नि:स्वार्थ सेवा की कद्र करते हुए उन्हें सलाम जरूर ठोंकेंगे। 
ये बात भी बिलकुल खरे सोने की तरह टंच है कि इंदौर की सांसद और इस वक्त लोकसभा में स्पीकर कुर्सी पर आसीन श्रीमती सुमित्रा महाजन सार्वजनिक रूप से बहुत कम ही किसी की प्रशंसा करती हैं लेकिन जब केंद्रीय खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल इंदौर के चिमनबाग मैदान पर प्रस्तावित साई सेंटर के लिए स्थान देखने आए तो वहां मौजूद ताई ने दूर अकेली खड़ी सरला सरवटे को बुलवाया और फिर केंद्रीय खेल मंत्री से परिचय करवाया कि 'ये हैं हमारे इंदौर मध्यप्रदेश की शान सरला सरवटे... इन्होंने अपना पूरा जीवन खेल को समर्पित कर दिया।'
 
सुमित्रा ताई सरला की जो प्रशंसा कर रही थीं, वो दिल से थी। इसकी वजह यही है कि उन्होंने सरला के परिवार की गरीबी को करीब से देखा, बीमार पड़ी मां की मदद भी की और जब भी सरला ने देश या विदेश में उपलब्धि हासिल की, तब उनकी पीठ भी थपथपाई। ताई का यह स्नेह बिरले लोगों के नसीब में ही आता है जिसमें सरला सरवटे भी शामिल हैं।
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सरला सरवटे का तैराकी जीवन अहिल्याश्रम में नौवीं कक्षा से शुरू हुआ था। तिलक पथ से वे सुरेखा जोशी और नीना मित्तल के साथ नेहरू पार्क के स्वीमिंग पूल आती थीं और तैराकी किया करती थीं। कोच रमेश व्यास की पारखी नजरें उन पर पड़ीं और उन्होंने गोताखोरी के गुर सिखलाना शुरू कर दिए। सरला ने तैराकी जीवन का पहला कांस्य पदक मद्रास में आयोजित स्कूल्स नेशनल में 3 मीटर डायविंग में जीता। नौंवी की छात्रा द्वारा मध्यप्रदेश को नेशनल में कांस्य दिलाना भी तब बड़ी बात मानी जाती थी। 
 
सरला के पिता गोपालराव माधवराव सरवटे मिल में काम करते थे, जबकि मां गृहिणी थीं। मिल बंद होने से परिवार पर गहरा आर्थिक संकट मंडराने लगा। इसी बीच मां को पैरालिसिस अटैक आ गया और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। सरला के अनुसार परिवार में 5 भाई और 5 बहनों में मैं सबसे छोटी थी और मुझसे छोटा भाई था। हमारी स्थिति इतनी खराब हुआ करती थी कि मैंने लोगों की रोटियां तक बनाईं और किसी तरह घर चलाया। पिता साया भी सिर से उठ गया था... मैंने बहनों को पढ़ाया और शादियां भी कीं।
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स्कूल नेशनल के बाद राष्ट्रीय स्तर पर जूनियर और सीनियर में 7 स्वर्ण, 6 रजत और 10 कांस्य पदक जीतने वाली सरला 4 सालों तक नेशनल में 3 मीटर और 10 मीटर गोताखोरी में गोल्ड मैडलिस्ट रहीं। 1975-76 में श्रीलंका में आयोजित आमंत्रित अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में सरला ने 3 मीटर और 10 मीटर में भारत को कांस्य पदक दिलवाया।
 
त्रिवेंद्रम में जब इंडिया टीम के लिए सरला का चयन हुआ, तब वे विदेश नहीं जाना चाहती थीं। इसका कारण ये था कि उनके पास न तो ढंग के कपड़े थे और घर की माली हालत का उन्हें अहसास था लेकिन कोच रमेश व्यास के दबाव में उन्होंने श्रीलंका जाने का निर्णय लिया। वे पहली बार विमान में बैठी तो बेहद रोमांचित थीं। सरला कहती हैं कि श्रीलंका में जब पार्टी होती थी, तब मैं अकेली लड़की हुआ करती थी जिसके कपड़े सबसे गंदे होते थे, बहुत शर्म महसूस करती थी मेरे पास पहनने के लिए ढंग के कपड़े तक नहीं हैं लेकिन मैं मजबूर थी... क्या कर सकती थी...?
 
1 अप्रैल 1979 में मुझे इंडिया खेलने की वजह से इंदौर नगर निगम में नौकरी लग गई थी। हालांकि मुझे दूरसंचार विभाग और रेलवे से भी नौकरी के प्रस्ताव मिले थे लेकिन मैंने पानी को इसलिए चुना, क्योंकि उसके बिना मैं रह नहीं सकती थी। 1982 में दिल्ली एशियाड के लिए भारतीय गोताखोरी टीम में मेरा चयन हुआ। 
 
मैं इंडिया टीम के लिए लगे कैंप में नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि वो 2 महीने चलने वाला था। मैं जानती थी कि यदि मैं कैंप में चली गई तो मेरे घर का क्या होगा, क्योंकि तब मेरी तनख्वाह से ही घर चलता था। घर वाले भी यही कहते थे कि यदि तू चली जाएगी तो हम खाने से मोहताज हो जाएंगे। तब नगर निगम के कमिश्नर पटवर्धन साहब हुआ करते थे और उन्होंने मुझे कैंप की छूट दी, साथ ही मेरा वेतन भी घर पहुंचाया। 
 
एशियाड के लिए भारतीय गोताखोरी टीम में चयन की पहली सूचना मुझे हॉकी के गोलकीपर मीररंजन नेगी ने दी। मैं सुबह अपना अभ्यास कर रही थी और उन्होंने आकर बधाई दी...। मैंने पूछा बधाई किसलिए? वो बोले टीम की लिस्ट तो शाम को ही बोर्ड पर लग गई थी... तुमने देखी नहीं? मैंने कहा नहीं, लेकिन जब उन्होंने भारतीय टीम में शामिल होने से अवगत कराया तो आंखों में आंसू आ गए। तिलक पथ, टूटा-पुराना घर और मां याद आ गई...। घर में टेलीफोन नहीं था, तब ऊपर रहने वाले परिवार को फोन करके जानकारी दी, क्योंकि मां तो पैरालिसिस के कारण बिस्तर पर ही थीं..।
 
सरला ने कहा कि कठिन परिस्थितियों में मीररंजन नेगी ने मेरा जो साथ दिया, उस अहसान को मैं जीवनभर भूल नहीं सकती। 1982 में देश में टीवी भी नया-नया आया था... बेहद रोमांचित थी। एशियाड में 3 मीटर और 10 मीटर गोताखोरी में सरला ने 6ठी पोजिशन हासिल की। इसके बाद से मैंने खेल छोड़कर कोचिंग शुरू की। सरला की दमदार कोचिंग का ही नतीजा रहा कि मीति आगाशे, मनीषा गुप्ता, प्रथा क्षीरसागर, सहिता हरदास, श्वेता गोगटे, पूजा पाटीदार, रुचिरा कविश्वर ने राष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश का नाम रोशन किया। मीति, मनीषा और श्वेता को प्रदेश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार 'विक्रम अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया, जबकि प्रथा को विक्रम के साथ एकलव्य, पूजा पाटीदार और राधिका आप्टे को एकलव्य पुरस्कार मिला। 
 
सरला की कोचिंग में करीब 5 हजार से ज्यादा बच्चे तैयार हुए। यही नहीं, आज इंदौर के 15 विभिन्न स्कूलों में जो लड़कियां कोचिंग कर रही हैं, उन्हें सरला ने ही तैयार किया है। भविष्य की योजना यही है कि छोटा-सा स्वीमिंग पूल मिल जाए तो वे वहां पर ढाई साल से लेकर 11 साल तक की उम्र के बच्चों को कोचिंग देना चाहती हैं। इसके अलावा कोलंबिया कॉन्वेंट स्कूल से जुड़कर राष्ट्रीय स्तर के गोताखोर तैयार करने की भी योजना है। 
 
1975-76 में विक्रम अवॉर्ड से सम्मानित सरला सरवटे को यही मलाल है कि मैंने जितने साल स्वीमिंग पूल को दिए, बदले में मध्यप्रदेश सरकार से मुझे वो सम्मान नहीं मिला जिसकी मैं हकदार हूं। उनका इशारा 'लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान' की तरफ था। उन्होंने कहा कि मुझे सुकून सिर्फ इतना है कि मैंने जिन लड़कियों को तैयार किया, वो मुझे हमेशा याद रखती हैं। मीति आगाशे और प्रथा क्षीरसागर यूएस से याद करती हैं तो श्वेता गोगटे पुणे से। और भी शिष्याएं हैं जिनके दिलों में मेरे लिए असीम सम्मान है। 
 
मुझे नेहरू पार्क स्वीमिंग पूल पर नरेन्द्र कटारे, अनिल दराड़े, दीपू बागोरा, संजय व्यास, राजदीप स्वामी, सुरेश दुबे, रेवत‍ सिंह हाड़ा, जफर दिलावर अंसारी, सिकंदर खिलजी से जो स्नेह और सहयोग मिला, वो जीवनभर याद रहेगा। साथ ही मैं खुशनसीब हूं कि मुझे रमेश व्यास जैसे कोच मिले जिन्होंने मेरे खेल जीवन को शीर्ष पर पहुंचाने में मदद की। 
 
31 मार्च 2016 को आप रिटायर हो रही हैं, क्या कहेंगी? इस पर सरला ने कहा कि खिलाड़ी कभी रिटायर नहीं होता। यह तो नौकरी की व्यवस्था है, मैं भला पानी से कहां दूर रह सकती हूं? आप शहर में किसी भी स्वीमिंग पूल पर जाएंगे, तब मैं बच्चों को तैराकी और गोताखोरी के गुर सिखाते ही नजर आऊंगी।

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