चंडीगढ़। फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर महान धावक मिल्खा सिंह अंतत: जिंदगी की दौड़ हार गए और कोरोना से एक माह की जंग लड़ने के बाद शुक्रवार की देर रात यहां पीजीआई में उनका निधन हो गया।
चंडीगढ़ में पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च में उनका कोविड-19 का इलाज चल रहा था, कोविड सेंटर के आईसीयू यूनिट से बाहर ले जाने के दो दिन बाद उनकी हालत शुक्रवार को बिगड़ गई और देर रात उनका निधन हो गया।
200 मीटर और 400 मीटर के नेशनल रिकॉर्ड
मिल्खा सिंह ने 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में एक रॉ टैलेंट के रूप में हिस्सा लिया था और उस साल उनका प्रदर्शन भी अच्छा नहीं रहा। लेकिन आने वाले वर्षों में उन्होंने ना सिर्फ खुद को निखारा बल्कि कई रिकॉर्ड भी अपने नाम किए। 200 मीटर और 400 मीटर के नेशनल रिकॉर्ड मिल्खा के नाम पर दर्ज थे।
80 अंतरराष्ट्रीय दौड़ों में 77 जीतीं
मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख के नाम से जाना जाता था, 50 और 60 के दशक के दौरान करीब एक दशक से अधिक समय तक मिल्खा सिंह का जादू ट्रैक एंड फील्ड पर जमकर चलता था। उन्होंने 80 अंतरराष्ट्रीय दौड़ों में हिस्सा लिया और 77 जीतीं। साथ ही मिल्खा सिंह ने तीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया जिसमें मेलबर्न 1956, रोम 1960 और टोक्यो 1964 शामिल हैं।
1960 के रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह 400 मीटर की दौड़ में पदक जीतने के बाद एक फोटो फिनिशर के तौर पर उभरकर सामने आए, इस दौड़ में वह 45.73 के समय के साथ चौथे पायदान पर रहे, आपको बता दें कि यह एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है जो 40 वर्षों तक बना रहा।
भले ही मिल्खा सिंह का यह रिकॉर्ड 40 सालों तक बना रहा हो लेकिन इसके बाद भी वह उस समय पदक से चूक गए थे। इसी वजह से उनको महान होने का दर्जा नहीं मिल सका।
जब जीता था राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक
मिल्खा सिंह को हमेशा से एक बेहद जुनूनी और समर्पित एथलीट माना जाता था। 1958 के टोक्यो एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर में गोल्ड मेडल हासिल किया था। मेलबर्न ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने फाइनल इवेंट के लिए क्वॉलिफाइ नहीं कर पाए थे। लेकिन उनमें आगे बढ़ना का पूरा हौसला था। उन्होंने अमेरिका के चार्ल्स जेनकिंस से बात की और जेनकिंस 400 मीटर और 4X400 मीटर में गोल्ड मेडलिस्ट थे। मिल्खा सिंह ने जेनकिंस से उनके ट्रेनिंग और कैसे खुद को तैयार करते हैं ये सब पूछा।
जेनकिंस ने भी उनकी पूरी मदद की और मिल्खा का उनकी ट्रेनिंग में पूरा साथ निभाया। इसका फायदा भी उनको देखने को मिला और 1958 में कार्डिफ में 440 यार्ड की दौड़ जीतने के बाद मिल्खा सिंह राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के पहले स्वर्ण पदक विजेता बने थे। उन्होंने मात्र 47 सेकंड में गोल्ड मेडल हासिल कर लिया था।
दूसरा गोल्ड मेडल उन्होंने चित प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के अब्दुल खालिद को हराकर जीता था। खालिस को एशिया का सर्वश्रेष्ठ धावक माना जाता था और मिल्खा उस समय शानदार फॉर्म में थे। उन्होंने महज 21.6 सेकंड में गोल्ड मेडल जीतकर एशियन गेम्स का नया कीर्तिमान स्थापित किया था। फिनिशिंग लाइन पर टांग की मांसपेशियों में खिंचाव आने की वजह से वह गिर गए थे और 0.1 सेकंड के अंतर से जीते।
एक ऐसा रिकॉर्ड जो 52 सालों तक कायम रहा
मिल्खा कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैंक एंड फील्ड में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बने। उनका यह रिकॉर्ड 52 सालों तक कायम रहा। मिल्खा सिंह स्वर्ण पदक जीतने के बाद उनके तमगे का खूब जश्न मनाया गया था। इतना ही नहीं उनके अनुरोध पर तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने एक दिन के राष्ट्रीय अवकाश का भी ऐलान किया था।
1962 के जकार्ता एशियन खेलों में उन्होंने दो गोल्ड मेडल अपने नाम किए। मिल्खा के लिए सबसे बड़ी चुनौती माखन सिंह थे, जिन्होंने नेशनल चैंपियनशिप में मिल्खा को हराया भी था। मिल्खा ने बाद में कहा भी था, 'अगर ट्रैक पर मुझे किसी से डर लगता था तो वह माखन था। वह शानदार एथलीट था। उसने मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करवाया।'
जानकारी के लिए बता दें कि मिल्खा सिंह ने अपने पूरे करियर में कुल 10 गोल्ड मेडल जीतकर अपने नाम किए।