नई दिल्ली: सुशील कुमार का एक मामले में फंसना भारतीय कुश्ती की प्रतिष्ठा के लिये करारा झटका था लेकिन ओलंपिक में रवि दहिया का उदय और टोक्यो ओलंपिक में बजरंग पूनिया की अपेक्षित सफलता ने वर्ष 2021 में इस खेल को रसातल में जाने से रोक दिया।
									
			
			 
 			
 
 			
					
			        							
								
																	विनेश फोगाट का ओलंपिक पदक जीतने का सपना फिर से पूरा नहीं हो पाया लेकिन इस साल भारतीय कुश्ती को अंशु मलिक के रूप में नयी नायिका भी मिली जिन्होंने विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचकर इतिहास रचा।
									
										
								
																	सुशील कुमार ने की पहलवानों की छवि खराब
भारतीय कुश्ती के नायक सुशील कुमार को जब टोक्यो खेलों की तैयारियां करनी थी तब वह अपने साथी पहलवान सागर धनकड़ की हत्या के आरोप में तिहाड़ जेल में सलाखों के पीछे थे।
									
										
										
								
																	
यह भारतीय कुश्ती के लिये बहुत बड़ा झटका था। ओलंपिक में दो पदक और विश्व खिताब जीतने वाले एकमात्र भारतीय पहलवान 38 वर्षीय सुशील ने जिस तरह से गिरफ्तार किये जाने से पहले पुलिस के साथ लुकाछिपी का खेल खेला उससे भारतीय कुश्ती का गलत चेहरा ही सामने आया।
									
											
									
			        							
								
																	रवि दहिया ने जीता रजत पदक
लेकिन इस निराशा के बीच टोक्यो ओलंपिक खेलों में आशा की किरण नजर आयी। बजरंग और विनेश पदक के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे लेकिन वह रवि दहिया थे जो सेमीफाइनल में कजाखस्तान के नुरिस्लाम सनायेव के खिलाफ 2-9 से पिछड़ने के बाद दमदार वापसी करके भारतीय कुश्ती में नये सितारे में रूप में उबरे। वह रूस के जावुर उगुऐव के खिलाफ फाइनल में अपनी इस सफलता को नहीं दोहरा पाये लेकिन ओलंपिक रजत पदक उन्हें रातों रात स्टार बना गया।
									
										
										
								
																	
अंतिम दिन बजरंग ने मारी बाजी
बजरंग को स्वर्ण पदक का दावेदार माना जा रहा था लेकिन उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। विश्व चैंपियनशिप 2019 में कांस्य पदक जीतने के बाद वह बमुश्किल किसी टूर्नामेंट में हारे थे। उनके वजन वर्ग 65 किग्रा में कड़ी चुनौती होने के बावजूद बजरंग के फाइनल में पहुंचने की उम्मीद थी।
									
											
								
								
								
								
								
								
										
			        							
								
																	बाद में उन्होंने खुलासा किया कि रूस में एक टूर्नामेंट के दौरान उनके घुटने में चोट लग गयी थी। इसके बावजूद पदक जीतने से उनकी प्रतिष्ठा ही बढ़ी। कुश्ती में दो पदक से इस खेल में भारत ने 2008 ओलंपिक से लेकर तोक्यो तक पदक जीतने का सिलसिला जारी रखा।
									
			                     
							
							
			        							
								
																	विनेश ने किया निराश
महिला वर्ग में पदक की प्रबल दावेदार विनेश को निराशा हाथ लगी। यह दूसरा अवसर था जब उनका ओलंपिक पदक जीतने का सपना पूरा नहीं हो पाया। वह बेलारूस की वनेसा कलाजिन्सकाया से हारकर बाहर हो गयी थी।
									
			                     
							
							
			        							
								
																	यही नहीं उन्हें खेलों के दौरान अनुशासनहीनता दिखाने के लिये राष्ट्रीय महासंघ ने निलंबित भी कर दिया था। उन्होंने कथित तौर पर अपने हमवतन खिलाड़ियों के साथ अभ्यास करने से इन्कार कर दिया था। माफी मांगने के बाद हालांकि उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
									
										
										
								
																	
इस बीच अंशु मलिक ने अपनी छाप छोड़ी। हरियाणा की इस 20 वर्षीय पहलवान ने सीनियर एशियाई खिताब जीतकर टोक्यो खेलों के लिये क्वालीफाई किया लेकिन अनुभव की कमी के कारण वह वहां कुछ खास नहीं कर पायी। लेकिन वह खुद को साबित करने के लिये तैयार थी तथा ओस्लो विश्व चैंपियनशिप में वह फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनी।
									
			                     
							
							
			        							
								
																	उन्होंने दो बार की ओलंपिक पदक विजेता अमेरिका की हेलन मारोलिस के खिलाफ अपने सभी दांव आजमाये लेकिन आखिर में उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा। सरिता मोर ने भी विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।(भाषा)