भारतीय हॉकी के मौजूदा स्तर से चिंतित पूर्व ओलिम्पियन और धुरंधर खिलाड़ियों ने यहाँ इस राष्ट्रीय खेल का खोया गौरव लौटाने के लिए जरूरी उपायों पर चर्चा की।
कुछ ने मौजूदा दशा के लिए प्रशासन की कमियों को दोषी ठहराया तो कुछ ने सरकारी नीतियों पर ठीकरा फोड़ा। सभी कहीं ना कहीं इस स्थिति से व्यथित जरूर दिखे।
महिला हॉकी टीम के कोच एम के कौशिक ने कहा कि हम अपने खिलाड़ियों का पर्याप्त सम्मान नहीं करते। हम उन्हें सितारा नहीं बनाते। हम 1998 एशियाड की सफलता को भुना सकते थे। हमें धन का निवेश करके खेल का सही तरीके से प्रसार करना होगा।
उन्होंने कहा हमारी भी एक पेशेवर लीग है लेकिन इसे अहमियत नहीं मिलती। इसे इंडियन प्रीमियर लीग की तरह बनाया जा सकता था।
पूर्व ओलिम्पियन नंदीसिंह ने कहा कि हमें खेल के संरक्षण की जरूरत है। इसमें पर्याप्त पैसा भी होना चाहिए और ऐसा तभी होगा जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक जीत हासिल की जाए।
भारतीय हॉकी की तदर्थ चयन समिति के सदस्य और पूर्व ओलम्पियन जफर इकबाल ने बीजिंग ओलम्पिक खेलों के बाद भारतीय हॉकी की गंभीर समस्या का जिक्र करते हुए कहा कि पूरी दुनिया में हॉकी खेल का स्तर शिखर पर है और इस समय देश में उस स्तर के खिलाड़ियों का अभाव है।
अस्सी सालों में केवल एक ओलम्पिक में भाग नहीं ले पाने से भारतीय हॉकी टीम अपने विरोधियों से स्तर और कौशल दोनों में वर्षाे पीछे चली गई हैं।
बीजिंग ओलम्पिक खेलों की हॉकी प्रतियोगित देखने के बाद हमें यह महसूस हुआ कि विश्व स्तर पर हॉकी का स्तर काफी ऊँचा हो गया है, जिसमें कौशल रणनीति और दमखम भी शामिल है। यह खेल अब पहले जैसा नहीं रह गया है। नए नियम आ चुके है, इसलिए जरूरी हो गया है कि अपने कौशल का विकास करें।
पूर्व कप्तान ने कहा हॉकी को जिला स्तर और क्लब स्तर पुनर्जीवित करना होगा, वरना देश में इस खेल के स्तर को आगे बढाना मुश्किल हो जाएगा।
जफर ने कहा कि यह भी महत्वपूर्ण है कि राज्य प्रशासन ज्यादा से ज्यादा हॉकी टूर्नामेंट आयोजित कराए। खिलाड़ियों को राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के अलावा अन्य प्रतियोगिताओं में भी ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताओं भाग लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हॉकी को स्कूली और कॉलेज के स्तर पर पाठयक्रम में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा लोग इस खेल में शामिल हो सके और देश में खेल संस्कृति बन सके।