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मैनचेस्टर के लिए 8.16 करोड़ पाउंड की बोली

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हमें फॉलो करें थाकसिन सिनवात्रा प्रीमियर फुटबॉल क्लब मैनचेस्टर बोली
लंदन (वार्ता) , शुक्रवार, 22 जून 2007 (12:20 IST)
थाईलैंड के अपदस्थ प्रधानमंत्री थाकसिन सिनवात्रा के नियंत्रण वाली एक कंपनी ने इंग्लैड के प्रीमियर फुटबॉल क्लब मैनचेस्टर सिटी के अधिग्रहण के लिए 8 करोड़ 16 लाख पाउंड की बोली लगाई है।

क्लब के निदेशक मंडल ने भी इस बोली को अपना समर्थन देने की घोषणा कर दी है। यह बोली सिनवात्रा के बेटे और बेटी द्वारा संचालित कंपनी यूके स्पोर्ट्स इंवेस्टमेंट ने लगाई है।

सिनवात्रा ने थाईलैंड की एक अदालत द्वारा एक जमीन सौदे में पद के दुरूपयोग के मामले में आरोपी बनाए जाने के चंद घंटे बाद ही मैनचेस्टर सिटी की खरीद के लिए यह बोली लगाई है। वह गत सितंबर में रक्तहीन सैन्य तख्तापलट के बाद से ही लंदन में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

सिनवात्रा ने क्लब के निदेशक मंडल द्वारा उनकी बोली पर सकारात्मक प्रतिक्रिया जताए जाने के बाद कहा कि हम इस फुटबॉल क्लब को एफए प्रीमियर लीग और यूरोपीय फुटबॉल दोनों ही तरह की प्रतियोगिताओं में उसका सही स्थान दिलाने के प्रति समान रूप से प्रतिबद्ध हैं।

वर्ष 1960 और 1970 के दशकों में ढेरों कामयाबियाँ बटोरने वाले मैनचेस्टर सिटी क्लब के लिए पिछले कुछ साल काफी निराशाजनक रहे हैं। पिछले सीजन में तो वह प्रीमियर फुटबॉल में 14वें स्थान पर रहा था। यह देखते हुये फुटबॉलप्रेमियों में उम्मीद की किरण जगी है।

इस बीच इंग्लैंड के पूर्व कोच स्वेन गोरान एरिक्सन के बतौर मैनेजर मैनचेस्टर सिटी के साथ जुड़ने की चर्चा है। स्टुअर्ट पिअर्स को पिछले महीने मैनेजर पद से हटाए जाने के बाद से ही यह जगह खाली है। दूसरी तरफ एरिक्सन गत वर्ष विश्व कप के क्वार्टर फाइनल में पुर्तगाल के खिलाफ इंग्लैंड की हार के बाद से ही सक्रिय फुटबॉल से दूर हैं।

सिनवात्रा की इस सफल बोली के साथ ही मैनचेस्टर सिटी विदेशी नियंत्रण में जाने वाला इंग्लैंड का सातवाँ प्रीमियर फुटबॉल क्लब बन गया है। इसके पहले मैनचेस्टर यूनाइटेड, लिवरपूल, चेल्सिया और एस्टन विला जैसे क्लब पहले ही विदेशी नियंत्रण में चले गए हैं।

लेकिन मैनचेस्टर सिटी क्लब के समर्थकों के संगठन एमसीएससी के अध्यक्ष एलेन गैली को इससे कोई बहुत उम्मीद नहीं दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि फिलहाल हमारे पास कोई व्यवस्था नहीं है, सब कुछ अस्त व्यस्त है। सीजन से पहले कोई खेल नहीं होता है और कई खिलाड़ी भी क्लब का साथ छोड़ गए हैं, बहरहाल अब सुरंग के आखिर में उम्मीद की एक किरण तो जरूर दिखाई दे रही है।

वहीं थाईलैंड के विश्लेषकों ने सिनवात्रा के इस कदम के पीछे भी घरेलू राजनीति को प्रमुख वजह बताया है। उनके मुताबिक सिनवात्रा ने अपने देश में फुटबॉलप्रेमियों की बड़ी संख्या को देखते हुए उन्हें पक्ष में करने के मकसद से यह क्लब खरीदने का फैसला किया है।

गौरतलब है कि उन पर कई तरह के मामले थाईलैंड की अदालतों में चल रहे हैं और एक मामले का निर्णय तो 10 जुलाई को ही आने वाला है। अगर उन्हें 10 जुलाई को दोषी ठहरा दिया जाता है तो 10 वर्ष की कैद हो सकती है। इन आशंकाओं के चलते भी इस सौदे के भविष्य पर सवालिया निशान खड़े किए जा रहे हैं।

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