भारतीय हॉकी टीम के पूर्व गोलकीपिंग कोच मीररंजन नेगी ने देश के हर नुक्कड़ और कोने तक हॉकी खेल की पहुँच और इससे जुड़ी अधोसंरचना के विकास के अपने सपने को हकीकत में बदलने का बीड़ा उठाया है।
एक कार्यक्रम में भाग लेने यहाँ आए नेगी ने कहा कि एक सड़क दुर्घटना में असमय बिछड़ने वाले अपने 19 वर्षीय पुत्र अभिरंजन नेगी की याद में स्थापित हॉकी फाउंडेशन के जरिये वह देश में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में हॉकी की अलख जगाना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि हॉकी को फिर शिखर पर पहुँचाने के इरादे से की गई इस शुरुआत के जरिये वह देश के दूरदराज के क्षेत्रों विशेषकर ग्रामीण अंचलों और कस्बों की प्रतिभाओं को तराशने का इरादा रखते हैं।
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व गोलची नेगी की आत्मकथा 'फ्रॉम ग्लूम टू ग्लोरी' भी जल्द ही सामने आने वाली है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से मेरी आत्मकथा में देश में हॉकी से जुड़े कई चौंकाने वाले तथ्यों का खुलासा होगा।
आदित्य चोपड़ा की हाल ही में रिलीज फिल्म 'चक दे इंडिया' में पर्दे के पीछे शाहरुख खान सहित अन्य अभिनेताओं को हॉकी की बारीकियाँ सिखाने वाले नेगी कहते हैं कि फिल्म के बाद कई अभिभावकों ने उनसे संपर्क कर अपनी बच्चियों को हॉकी प्रशिक्षण देने का आग्रह किया है।
नेगी कहते है कि यह अच्छा संकेत है कि चक दे इंडिया के बाद लोगों का रुझान फिर हॉकी की तरफ हुआ है।
एक समय हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले भोपाल में इसकी खराब हालत के बारे में उन्होंने कहा कि हर खेल में उतार-चढ़ाव आता है भोपाल की हॉकी भी इसी दौर से गुजरी है।
खेल में राजनीतिक दखलअंदाजी की बात स्वीकार करते हुए नेगी कहते हैं कि सुधार तब तक संभव नहीं है जब तक हम यह नहीं समझ लेते हैं कि राष्ट्रीय खेल के आगे दूसरी सभी बातें गौण हैं।
भारतीय हॉकी के स्वर्णिम दौर की याद करते हुए उन्होंने कहा कि एक समय वह भी था, जब रिक्शावाले और तांगे वाले भी हॉकी मैच के बारे में बहस मुबाहिसे करते थे।
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि हॉकी ने खिलाड़ियों को कुछ दिया नहीं। आज कई हॉकी खिलाड़ी ऐसे हैं, जिनके पास शानदार नौकरी है।
कुछ ने तो पेट्रोल पंप भी खरीदे हैं, लेकिन हॉकी के उभरते युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने की तरफ शायद उनका ध्यान नहीं रहा।