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जज्बे और प्रतिबद्धता की मिसाल रहा है करियर

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अंतिम गेंद तक हार न मानने का जज्बा चोट और दर्द को दरकिनार करके मैदान पर उतरने की हिम्मत और अकेले मैच का रुख बदलने की कुव्वत के दम पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्पिनरों में शुमार अनिल कुंबले के संन्यास के साथ ही भारतीय क्रिकेट के इतिहास के एक सुनहरे अध्याय का अंत हो गया।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरे क्रिकेट टेस्ट के पाँचवें और अंतिम दिन संन्यास की घोषणा करके कुंबले ने अपने टेस्ट ॅरियर का अंत दिल्ली के उसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर किया, जो उनके क्रिकेट जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है।

कुंबले ने इसी मैदान पर 1992 में ईरानी ट्रॉफी मैच में शानदार प्रदर्शन करके भारतीय टीम में अपनी जगह पक्की की और यहीं 1999 में उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 'परफेक्ट टेन' का कारनामा दिखाया। भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान ने यहीं पिछले साल नवंबर में पाकिस्तान के खिलाफ अपनी कप्तानी पारी की शुरुआत जीत के साथ की थी।

भारतीय स्पिन की चौकड़ी में शामिल बीएस चंद्रशेखर को अपना आदर्श मानने वाले कुंबले ने अगस्त 1990 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट करियर की शुरुआत के बाद 18 साल में कुल 132 मैच खेले और 29.63 की औसत से 619 विकेट लिए जो किसी भी भारतीय गेंदबाज द्वारा सर्वाधिक टेस्ट विकेट हैं। उन्होंने बल्ले से भी अपनी काबिलियत साबित करते हुए 2506 रन बनाए, जिसमें एक शतक भी शामिल है।

अपने उतार-चढ़ाव भरे करियर में कुंबले ने हर मोड़ पर अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया और शेन वॉर्न तथा मुथैया मुरलीधरन के बाद टेस्ट क्रिकेट में 600 से अधिक विकेट लेने वाले दुनिया के तीसरे गेंदबाज भी बने।

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