स्वामी विवेकानंद का पत्र
भारतीय जनता के बारे में अपनी अंतरंग जानकारी के आधार पर स्वामी विवेकानंद पूर्णत: आश्वस्त हो गए थे कि राष्ट्र की जीवनधारा नष्ट नहीं हुई है, वरन् अज्ञान एवं निर्धनता के बोझ से दबी हुई है।
भारत अब भी ऐसे संतों का सृजन करता रहा है, जिनके आत्मा का संदेश स्वीकार करने को पाश्चात्य जगत ने एक स्वस्थ समाज रूपी रत्नपेटिका का निर्माण तो किया है, परंतु उनके पास रत्न का अभाव है। फिर उन्हें यह समझते भी देर न लगी कि भौतिकवादी सभ्यता के भीतर ही उसके विनाश के बीज भी छिपे रहते हैं। उन्होंने पश्चिमी देशों को बारम्बार इस आसन्न आपदा से आगाह किया।
पाश्चात्य क्षितिज का यह चमकीला आलोक एक अभिनव प्रभात का सूचक न होकर, एक बड़ी चिता की लपटों का भी सूचक हो सकता है। पाश्चात्य राष्ट्र अपनी निरंतर क्रियाशीलता के झोंक में निरुद्देश्य और अंतहीन क्रिया के जाल में फंस गए हैं।