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राष्ट्रीय युवा दिवस : गांवों का रुख करने को तैयार हैं युवा

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सुनहरा करियर छोड़ने को तैयार हैं आज का युवा

आलीशान दफ्तर, ऊंची तनख्वाह और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मोह को छोड़ देश का युवा अब कुछ गुजरने का सपना लिए गांवों का रुख कर रहा है। अधिक से अधिक युवा अब ग्रामीण स्तर पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों से जुड़ रहे हैं।

प्रमुख कंपनी जॉब्स मास्टर डॉट कॉम के सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि इंजीनियरिंग और एमबीए जैसे पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद ग्रामीण स्तर पर सक्रिय गैर सरकारी संगठनों में काम करने वाले शिक्षित युवाओं की संख्या में पिछले दो सालों में 26 प्रतिशत इजाफा हुआ है।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके महेंद्र चौधरी गांधी फैलोशिप से जुड़े हैं और उन्होंने एक समूचे गांव को कंप्यूटर साक्षर बनाने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने बताया कि वह हमेशा से ही अपनी पढ़ाई का लाभ गांव के स्तर तक पहुंचाना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपनी आईटी कंपनी की नौकरी छोड़ गांव में काम करने का मन बनाया।

उन्होंने बताया कि अपने मित्र रॉबिन राजहंस के साथ उन्हें पूरे गांव के युवाओं को कंप्यूटर शिक्षित बनाने का विचार आया और वह इसे पूरा करने में जुट गए। उन्होंने गांव में कंप्यूटर संबंधी शिक्षा देना शुरू कर दिया और अब उन्होंने गांव को ‘पूर्ण कंप्यूटर साक्षर’ गांव घोषित किए जाने के लिए प्रशासन को प्रस्ताव भेज दिया है।

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उनकी तरह ही गांव में शिक्षा के मॉडल को बेहतर करने के उद्देश्य से पिरामल फाउंडेशन में काम करने वाली क्रिसलिन डिकोस्टा ने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से शिक्षा हासिल की लेकिन फिर वह गांवों में काम कर रहे गैर सरकारी संगठन से जुड़ गईं।

वह बताती हैं कि वह मुंबई में ही पली-बढ़ी हैं और उन्होंने यहां आने से पहले कभी गांव देखा भी नहीं था। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी सहकर्मी अंशु सचदेवा और अर्चिता सिसोदिया के साथ गांवों के विद्यालयों में प्रायोगिक शिक्षा के प्रसार के लिए सरकारी स्कूलों के हेडमास्टरों के प्रशिक्षण का मन बनाया।

अंशु बताती है कि आने वाले समय में वह इन गांवों में यूथ कमेटी ‘युवा समिति’ का गठन करवाना चाहती हैं जिससे गांव के स्तर की समस्या को सुलझाने के लिए युवाओं को प्रशासन और सरकारी तंत्र पर निर्भर न रहना पड़े।

टोंक जिले के सोड़ा गांव की सरपंच छवि राजावत का कहना है कि चूंकि युवा का सरकारी तंत्र और राजनेताओं से भरोसा उठ चुका है इसलिए वह अपने स्तर से कुछ करने के लिए ग्रामीण स्तर पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों का रुख कर रहे हैं।

देश की पहली एमबीए सरपंच छवि ने भी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी छोड़ गांव के सरपंच का चुनाव लड़ा और जीत गईं। छवि ने बताया कि यदि आने वाले समय में युवाओं को प्रशासन और सरकारी तंत्र का सहयोग मिले तो अधिक युवा ग्रामीण स्तर पर विकास कार्यों में जुटने के लिए आगे आएंगे। (भाषा)

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