कोलकाता। अफगानिस्तान में एक अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन (आईएनजीओ) में वरिष्ठ पद पर कार्यरत भारतीय नागरिक सुब्रत ने देश की राजधानी काबुल में 15 अगस्त को तालिबान के प्रवेश से कुछ घंटे पहले नई दिल्ली के लिए काम एयरलाइंस की उड़ान में सवार होने के बाद ईश्वर को धन्यवाद दिया था।
सुब्रत को अपने आवास और हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बीच 12 किलोमीटर की दूरी कार में तय करने में दो घंटे का समय लग गया था क्योंकि सुबह का समय होने के बावजूद सड़कें वाहनों से भरी हुई थीं।
इसके अलावा उनकी उड़ान को रनवे के किनारे लगभग एक घंटे से अधिक समय तक उड़ान भरने से रोक दिया गया था क्योंकि अमेरिकी वायुसेना के विमान देश के नागरिकों को निकालने के लिए उतर रहे थे। इससे शहर में तालिबान के प्रवेश की आशंका बढ़ गई थी।
सुब्रत ने दिल्ली से कहा, मैंने लंबी दाढ़ी और पगड़ी पहनकर एक अफगान भेष में या एक मूक-बधिर व्यक्ति बनकर हवाई अड्डे जाने का विचार किया था। मुझे भय था कि तालिबान द्वारा मुझे उन चौकियों पर रोका जा सकता है, जो सड़कों पर बनाई गई हों।
सुब्रत ने विभिन्न भेष बनाकर परखा लेकिन बाद में सामान्य कपड़ों में ही हवाई अड्डा जाने का फैसला किया। विमान में भारतीय, यूरोपीय और अफ्रीकियों के अलावा अफगानिस्तान के लोग भी थे जो संघर्षग्रस्त देश को छोड़कर जा रहे थे। हालांकिविमान के अफगान परिचारक अपनी वापसी को लेकर संशय में थे। सुब्रत ने कहा, मैंने एक परिचारक को पश्तो में फुसफुसाते सुना : खुदा जाने हम काबुल कैसे और कब लौटेंगे।
उड़ान भरने से एक रात पहले सुब्रत ने महसूस किया कि अकेले बंदूकें सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकतीं और सूचना सबसे मजबूत बचाव है। अफगानिस्तान में 2015 से तैनात सुब्रत ने कहा, मुझे उस रात इसकी कोई जानकारी नहीं थी कि तालिबान शहर में प्रवेश कर चुका है या नहीं।
उन्होंने कहा, मैं हवाई अड्डे के लिए 12 किमी की दूरी तय करने के लिए तड़के ही अपने आवास से निकला और लगभग 6.15 बजे वहां पहुंच गया। उड़ान पूर्वाह्न 10.45 बजे प्रस्थान करने वाली थी। उन्होंने उड़ान का टिकट दिल्ली तक के लिए लिया था, जहां उनका परिवार रहता है। उनके संगठन के सुरक्षा अधिकारी ने उन्हें बताया था कि तालिबान जल्द ही काबुल में प्रवेश कर सकता है और उन्हें बस निकल जाना चाहिए।
हालांकि सुब्रत थोड़े झिझक रहे थे क्योंकि अन्य आईएनजीओ में कार्यरत उनके अन्य समकक्षों की तरह ही उन्हें इसका यकीन था कि काबुल 20 अगस्त को मुहर्रम से पहले तालिबान के नियंत्रण में नहीं आएगा। बाद में पता चला कि उनकी उड़ान अफगानिस्तान से भारत के लिए रवाना होने वाली दूसरी आखिरी व्यावसायिक उड़ान थी।
सुब्रत ने कहा, काबुल में स्थिति 13 अगस्त से तनावपूर्ण हो गई थी क्योंकि तालिबान ने हेरात, कंधार, कुंदुज और अन्य प्रांतों पर एक-एक करके कब्जा कर लिया था। मुझे लगता है कि खुद तालिबान को भी यह उम्मीद नहीं थी कि ये प्रांत इतनी तेजी से उनके कब्जे में आ जाएंगे। लोगों की स्मृति में दो दशक पहले तालिबान के शासन के दौरान की यातनाओं की तस्वीरें अभी भी ताजा हैं।
सुब्रत ने कहा कि कई अफगान लोगों ने उनसे दिल्ली में शरण पाने में मदद करने का अनुरोध किया था। सुब्रह ने कहा, मैं 18 अगस्त से पहले घर नहीं लौटना चाहता था क्योंकि मैं एक हफ्ते पहले ही काबुल पहुंचा था और बहुत काम बाकी था लेकिन परिदृश्य तेजी से बदल रहा था। मुझे बताया गया कि बैंकों ने यह कहते हुए अपने शटर गिरा दिए कि उनके पास पैसा नहीं बचा है।
इन अफवाहों ने लोगों में डर और बढ़ा दिया कि अब नए पासपोर्ट जारी नहीं किए जा रहे हैं। सुब्रत भारतीय दूतावास से संपर्क नहीं कर सके और उनका भय तब और बढ़ गया जब उन्हें बताया गया कि काबुल में पुल-ए-चरखी जेल में विस्फोट हुए हैं जो तालिबान के जेल में बंद सदस्यों को मुक्त कराने के लिए किए गए थे।
उन्होंने कहा, मैंने काबुल की तंग गलियों को आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की कारों के साथ देखा, जो अपने परिवार के साथ पड़ोसी क्षेत्रों से शहर में आए थे। पार्क इन असहाय लोगों से भरे हुए थे। सुब्रत ने हवाई अड्डे पर एक कियोस्क मालिक के साथ अपनी बातचीत याद की जिससे वह अपनी यात्रा के दौरान बिस्कुट और केक खरीदते थे।
सुब्रत ने कहा, वह आदमी बहुत उदास लग रहा था। उसने मुझसे कहा, कृपया याद रखें कि अफगानिस्तान एक खूबसूरत देश है, लेकिन जहां तक स्थाई शांति का सवाल है, तो उसका कोई भाग्य नहीं है। यह पूछे जाने पर कि क्या वह वापस अफगानिस्तान लौटना चाहेंगे, सुब्रत ने कहा कि वह वापस लौटना चाहेंगे, क्योंकि अभी बहुत काम किया जाना बाकी है।(भाषा)