मैं पढ़ाई में विशेष तो नहीं थी, लेकिन हाँ अपनी मेहनत से खुद को पिछड़ने भी नहीं देती थी। शिक्षक की लाडली होने के लिए यही पर्याप्त नहीं था। कक्षा में प्रथम आना ही उसकी पहली कसोटी थी। जो कमजोर थे, उन्हें गिनता ही कौन था।
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कॉलेज आते-आते सबने अपनी-अपनी राह चुन ली। कोई डॉक्टरी करने के सपने सँजोने लगी, तो किसी ने मास्टरी को ही अपना लक्ष्य मान लिया। मैं स्नातक करने मुंबई चली गई, कॉलेज में स्कॉरशिप मिली और ऑस्ट्रेलिया के एक विश्वविद्यालय में पढ़ने का मौका मिला।
अब पूरे परिवार के साथ कनाडा में हूँ, यहीं कॉलेज में मुझे लेक्चररशिप मिल गई। मेरी इच्छा हुई कि उन खास लोगों के बारे में कुछ जानकारी मिले, क्योंकि जीवन में उन्हें खास ही मिला होगा। लेकिन यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक की शादी हो गई और उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और एक उसी शहर में स्कूल टीचर हो गई है। यह जानकर थोड़ा सुकून भी हुआ, लेकिन स्कूल के दिनों की वो टीस आज भी ताजा हो उठती है।