Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सर का वह गुरुमंत्र

हमें फॉलो करें सर का वह गुरुमंत्र
ND
- ज्योति जैन

तब मैं अहिल्याश्रम में पढ़ती थी और श्रीराम ताम्रकर सर हमें नागरिक शास्त्र पढ़ाया करते थे। एक अच्छे इंसान होने के साथ-साथ एक अच्छे गुरु भी वे रहे। मुझे याद है, फिल्म जैसे विषय पर बात करने पर भी जहाँ अन्य शिक्षक डाँट पिलाते थे, वहीं ताम्रकर सर फिल्म के प्रति किशोरियों की जिज्ञासु प्रवृत्तियों को पहचान फिल्म के अन्य पहलुओं पर भी चर्चा करते थे। अपने लेखन के शौक के चलते उन दिनों मैं ऐसे ही तुकबंदी कर 4-6 लाइनें लिखती रहती थी।

जब सर को यह बात पता चली तो उन्होंने अन्य शिक्षकों की तरह 'फालतू कामों में समय मत गँवाओ। सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो।' न कहते हुए हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया 'और कविराज! आज क्या लिखा?' उनके ये स्नेह शब्द मुझे हमेशा प्रेरणा देते थे।

क्रॉसवर्ड भरने को भी वे कभी 'टाइम वेस्ट' नहीं कहते थे। पढ़ाई में मैं कभी अव्वल नहीं थी लेकिन मंच संचालन व अन्य गतिविधियों के मेरे शौक को पहचान वे सदैव प्रेरित करते थे। साथ ही उनका कहना था - 'लिखने के साथ-साथ छपो भी, न छपो तो फिर कोशिश करो, ये छपास की भूख नहीं कहलाती बल्कि तुम्हारी प्रतिभा औरों तक पहुँचे यह जरूरी है।

उनका यह गुरुमंत्र मैं कुछ वर्षों के बाद समझ पाई। जब मेरा पहला लेख छपा तो वह सर को ही समर्पित था। सर को तो शायद ये सब याद भी न हों, क्योंकि वे तो सभी को प्रेरित करते थे लेकिन 'कोशिश करते रहो' का उनका गुरुमं‍त्र आज भी मुझे याद है।

वर्षों बाद सर अब भी जब कभी मिलते हैं मस्तक व हृदय स्वत: ही उनके सम्मान में नम (झुक) जाते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi