साइकिल हाथ में छाते के साथ में कपड़े की थैली है उजली मटमैली है कंधे पर बैग है वही मंथर वेग है खाना-पानी संग है उड़ा हुआ रंग है अफसर से तंग है नीति कर्म में जंग है गांव तो चाहता है विभाग न चाहता है बदली की धमकी है सरपंच की घुड़की है बच्चे कहते हैं रोक देंगे रस्ते हैं माएं दुआ देती बहुएं घूंघट लेती निवृत्ति में बरस चार बाकी बस प्रमोशन न चाहते ऊंचाई न चाहते ये जमीन आन की वे हांके आसमान की शिक्षक आधी सदी नेकी एक न बदी।