हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यह दिवस पूर्व राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाते हैं। एक टीचर अपने विद्यार्थियों से कई तरह की अपेक्षा रखता है और वह संभवत: कई बातों को समझना या कहना चाहता है ताकि उसकी शिक्षा देने का महत्व सिद्ध हो। आओ जानते हैं कि एक टीचर ऐसी कौनसी बातें हैं तो कहना चाहता है अपने छात्रों से।
1. इंटेलिजेंट : एक टीचर सभी बच्चों को समान समझकर ही उन्हें शिक्षा देता है परंतु क्लास में कई बच्चे होते हैं जिसमें से कुछ इंटेलिजेंट होते हैं और कुछ पिछड़ जाते हैं। दअसल, जो बच्चे क्लास में जब जो पढ़ाया जा रहा है उसे ध्यान से सुनते और समझते हैं वे इंटेलिजेंट बन जाते हैं और जिनका ध्यान कहीं ओर रहता है वे पिछड़ते जाते हैं। जब कोई बच्चा क्लास में पिछड़ जाता है तो हमें बहुत बुरा लगता है क्योंकि इसके लिए हमें ही दोषी माना जाता है, जबकि हम उस बच्चे को बार-बार इस बात के लिए टोकते रहते हैं कि तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में नहीं है।
2. प्रैक्टिस : छात्रों कोई भी व्यक्ति सफल तब होता है या परीक्षा में अच्छे नंबर तब लाता है जबकि उसने जो पढ़ा या समझा है वह उसका अभ्यास करता रहता है अर्थात जिसे वह दोहराता रहता है। इसे ही प्रैक्टिस करना या रिवीजन करना कहते हैं। यह बहुत जरूरी होता है। यदि आप यह समझते हो कि एक बार पढ़ लिया तो हो गया बस, ऐसा नहीं है। हमें एक ही बात को बार-बार पढ़ना होता है। गणित के एक ही सवाल को बार-बार हल करना होता है।
3. होमवर्क : होमर्वक तीन तरह का होता है, पहला यह कि जो पढ़ाया या कराया उसके आगे का आपको समझकर घर पर करना है। जैसे हमने कोई एक तरह का सवाल बताया अब आपको उसी तरह के अन्य सवालों को घर पर हल करना है, यह भी एक तरह की प्रैक्टिस ही है। दूसरा जो कार्य आपसे स्कूल में छूट गया है उसे घर पर करना। तीसरा छुट्टियों में आपको थोड़ा बहुत होमवर्क देना। इससे आपकी प्रैक्टिस भी होगी और पढ़ाई में कान्टिनूइटी बनी रहेगी।
4. डिसप्लिन : यदि आप डिसप्लिन से नहीं रहते हैं तो आगे जीवन में आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अत: हम चाहते हैं कि आप समय पर स्कूल आएं और अपना हर कार्य समय पर करें। क्लासरूम में डिसप्लिन बनाकर रखें। क्लास में आपस में बातें करने से या ज्यादा शोर करने से जो बच्चे पढ़ने के लिए सदा उत्सुक रहते हैं उनका भी ध्यानभंग होता है और हमारा भी।
5. ओबीडीअन्ट : आपको ओबीडीअन्ट अर्थात आज्ञाकारी बनना चाहिए। यदि आप अपने माता-पिता और हमारे निर्देशों का पालन नहीं करते हैं तो इससे हमारा नहीं आपका ही नुकसान होने वाला है, क्योंकि हम जो बताते हैं वह अपने अनुभाव से बता रहे हैं। यदि आपको किसी कार्य को करने के लिए मना किया गया है तो उसे न करें। हम अपने विचार आप पर थोपना नहीं चाहते हैं परंतु हम यह चाहते हैं कि आप एक अच्छे विद्यार्थी बनें।