प्रोफेसर और दार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति का जन्म 1895 में आंध्रप्रदेश के मदनापाली में मध्यवर्ग परिवार में हुआ। कृष्णमूर्ति ने बड़ी ही फुर्ती और जीवटता से लगातार दुनिया के अनेकों भागों में भ्रमण किया और लोगों को शिक्षा दी और लोगों से शिक्षा ली। उन्होंने पूरा जीवन एक शिक्षक और छात्र की तरह बिताया। उन्होंने 91 वर्ष की आयु में 1986 को अमेरिका में देह छोड़ दी। लेकिन आज भी दुनियाभर की लाइब्रेरी में कृष्णमूर्ति उपलब्ध हैं।
1. सुनने पर रखें फोकस : हममें ज्ञान नहीं अंतर्दृष्टी होना चाहिए। किसी भी चीज की गहरे तक समझ और चीज की त्वरित समझ। यहां तक कि समझने के लिए ध्यान पूर्वक सुनना। कई मर्तबा आप सिर्फ देखते हैं, मगर सुनते नहीं। कुछ सीखने के बाद आप वैसा करने लगते हैं, इसका मतलब हुआ जब सीखने की क्रिया में जानकारी और ज्ञान का संग्रहण होता है, तो आप ज्ञान के मुताबिक काम करने लगते हैं, चाहे वह काम कुशलता से करें या अकुशलता से।
अर्थात सीखना यानी ज्ञान प्राप्त करना और उसका उपयोग करना है। फिर करो और सीखो भी एक तरीका है, जो सीखने और करने से बहुत अलग नहीं है। दोनों में ही ज्ञान का आधार विद्यमान है। इस तरह ज्ञान आपका स्वामी हो गया या ज्ञान आपका शासक हो गया। जहां भी सत्ता या शासक हो जाता है, वहां दमन भी होता है। इस प्रक्रिया से आप कहीं नहीं पहुंचते, यह तो एक यांत्रिक क्रिया है। उक्त दोनों प्रक्रिया में आप यांत्रिक गति ही देखते हैं। अगर आप सचमुच उस यांत्रिक गति को पहचान लेते हैं, तो इसका मतलब उस गति में आपकी जो दृष्टि है, वही है अंतर्दृष्टी। इसका मतलब हुआ कि आप ज्ञान से कोई बात नहीं सीखते, बल्कि सीखते हैं ज्ञान और उसकी सत्ता में निहित तत्वों को देखकर और इसलिए आपके सीखने का पूरा व्यवहार ही अलग प्रकार का हो जाता है।
2. प्रवचन नहीं बातचीन होना चाहिए : जे. कृष्णमूर्ति कहते थे कि ज्ञान के लिए संवादपूर्ण बातचीत करो, बहस नहीं, प्रवचन नहीं। बातचीत सवालों के समाधान को खोजती है, बहस नए सवाल खड़े करती जाती है और प्रवचन एकतरफा विचार है।
3. स्वतंत्र सोच होना चाहिए : जीवन का परिवर्तन सिर्फ इसी बोध में निहित है कि आप स्वतंत्र रूप से सोचते हैं कि नहीं और आप अपनी सोच पर ध्यान देते हैं कि नहीं। (मतबल यह कि आप एक मजहबी कुएं में बैठकर ही सोचते रहते हैं या कि आपकी खुद की सोच भी है या नहीं? यह भी की आप जो सोच रहे हैं उस पर सोचते हैं कि नहीं कि मैं क्या सोच रहा हूं सही या गलत? धर्म, राष्ट्र, समाज या अन्य किसी का चश्मा पहनकर दुनिया को ना देखें।)