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काशी -अब न रहे तेरा कागज कोरा

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समय ताम्रकर

आमतौर पर टीवी धारावाहिक का सेट इतना बड़ा नहीं होता जितना हमने काशी - अब ना रहे तेरा कागज कोरा के लिए लगाया है। ये बात इस धारावाहिक के निर्माता कल्याण गुहा गर्व के साथ बताते हैं। मुंबई स्थित फिल्मसिटी में एक गाँव का सेट बनाया गया है। इस गाँव में कुछ झोप़डियाँ हैं। कुआँ है। एक स्कूल है। एक हवेली है। मंदिर है। दुकान है। काफी भव्य सेट बनाया गया है और काम लगातार चल रहा है। कल्याण कहते हैं ऐसा गाँव आपको बिहार में देखने को मिलेगा। हमारे धारावाहिक की कहानी बिहार की ही है। ढोलकीपुर इस गाँव को नाम दिया गया है। यह गाँव धारावाहिक में एक साइलेंट कैरेक्टर है, इसलिए हमने सेट पर इतनी मेहनत की है।
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कहानी 8 वर्षीय लड़की काशी की है। वह निम्न वर्ग से है इसलिए कदम-कदम पर उसे मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। काशी पढ़ना चाहती है ताकि अपने गाँव का नाम रोशन कर सके। उसके माता-पिता भी यही चाहते हैं, लेकिन गाँव के तथाकथित प्रमुख लोग उसके रास्ते में रूकावट डालते हैं। काशी के गाँव में बिजली नहीं है और वह गाँव को रोशन करना चाहती है।

भारत गाँव में बसता है
क्या वजह है कि आजकल ज्यादातर धारावाहिकों की कहानी छोटी बच्चियों को ध्यान में रखकर लिखी जाती हैं और ग्रामीण पृष्ठभूमि हर दूसरे धारावाहिक में देखने को मिल रही है? पूछने पर कल्याण बताते हैं 'हमारे धारावाहिक की कहानी काशी की जीवन यात्रा पर आधारित है। फिलहाल तो उसका बचपन दिखाया जाएगा, लेकिन वक्त आने पर उसके किरदार में भी बदलाव आएगा और वह वयस्क रूप में भी नजर आएँगी। चूँकि टेलीविजन की ज्यादातर दर्शक ग्रामीण और महिलाएँ होती हैं, इसलिए उनको ही ध्यान में रखकर कहानी लिखी जाती है। ग्रामीण पृष्ठभूमि इसलिए रखी गई है कि गाँव वालों के पास मनोरंजन के लिए एकमात्र साधन टीवी है। इसलिए ऐसी कहानी पेश की जाती है जो उन्हें अपनी जैसी लगे। वैसे भी असल भारत गाँव में ही बसता है।

काशी जैसी है जन्नत
काशी का रोल निभा रही है जन्नत जुबैर रहमानी। जन्नत इसके पहले चाँद के पार चलो, कस्तूरी, आपकी अंतरा जैसे धारावाहिक कर चुकी है। 7 वर्षीय और दूसरी कक्षा की विद्यार्थी जन्नत बताती है कि स्कूल खत्म कर वह शूटिंग के लिए आती है और जल्दी ही उसके लिए एक विशेष कमरा सेट पर तैयार किया जा रहा है ताकि वह पढ़ाई के साथ-साथ खेल भी सके। डांस और स्केटिंग करना जन्नत को पसंद है और सलमान-कैटरीना उसके पसंदीदा कलाकार हैं। जन्नत का कहना है कि काशी और उसमें कई समानताएँ हैं। जैसे दोनों को पढ़ना अच्छा लगता है।

वास्तविकता के निकट
काशी के पिता बाबूराम का किरदार पंकज झा निभा रहे हैं। एक गरीब और ईमानदार पोस्टमैन बने पंकज झा का कहना है कि वे बिहार के ही रहने वाले हैं और बिहार में ऐसे कई गाँव हैं, जहाँ जाति के आधार पर व्यक्ति से व्यवहार किया जाता है। लड़कियों को शिक्षा के लायक नहीं समझा जाता है। इसीलिए उनका मानना है कि यह धारावाहिक वास्तविकता के निकट है।

चुनौती है ईश्वरी का रोल
काशी की माँ ईश्वरी के रोल में साई देओधर सिंह नजर आएँगी। साई की लंबे समय बाद छोटे पर्दे पर वापसी हो रही है। उनका कहना है कि ईश्वरी का रोल ही इतना दमदार है कि वे ना नहीं कह सकीं। साथ ही उन्हें धारावाहिक की थीम और सेटअप भी बड़ा पसंद आया। साई कहती हैं वे आधी महाराष्ट्रीयन और आधी बंगाली हैं। शादी उन्होंने पंजाबी से की है। बिहार के इस ग्रामीण किरदार को निभाना उनके लिए आसान नहीं है,लेकिन उन्होंने चुनौती के रूप में लिया है।

धर्मेश शाह द्वारा निर्देशित इस धारावाहिक का प्रसारण मार्च में एनडीटीवी इमैजिन पर शुरू होने वाला है।

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