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बच्चों के कंधों पर रखी अपनी बंदूक

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अनहद

बच्चों को प्रतिस्पर्धा के जहर और तरह-तरह की हीनभावनाओं से बचाने के लिए सरकारें परीक्षा पद्धति में बदलाव कर रही हैं, मगर दूसरी तरफ टीवी पर तरह-तरह के शो हैं जो बच्चों के बीच किस्म-किस्म की होड़ पैदा करते हैं। फालतू टाइप के सामान्य ज्ञान के क्विज शोज होते हैं। फिर गाने और नाचने के भी कई रियलिटी शो हैं, जिनमें ऑडिशन में नाकाम होने वाले बच्चे ऐसे रोते हैं जैसे जिंदगी ही खत्म हो गई है और सिर्फ ऑडिशन में चुन लिए गए बच्चे इस तरह चिल्लाकर खुशी जाहिर करते हैं, मानो जिंदगी का लक्ष्य मिल गया हो। नाकाम बच्चों के आँसू दिखाए जाते हैं, जिन्हें देखकर नाकाम रहने वाले बच्चे और गहरी उदासी में चले जाते हैं।

छोटी उम्र के बच्चों को मॉडलिंग और टीवी सीरियल में सताए जाने के खिलाफ एक अभियान चला भी था। मगर यह सिर्फ मंत्रालयों के पत्रों और बयानों तक सिमटकर रह गया। पिछले कुछ समय से, जबसे एकल परिवार ज्यादा अस्तित्व में आए हैं, तबसे बच्चों को लेकर माता-पिता की महत्वाकांक्षा बढ़ गई है। पहले संयुक्त परिवार में जब बच्चे पैदा होते थे (और होते ही रहते थे) तो आदमी बहुत सारे बच्चों को देखता था। अब होता यह है कि एकल परिवार में पला लड़का और एकल परिवार में पली लड़की। इनकी शादी हुई और शादी के बाद ये हस्बे मामूल एकल हो गए। यानी अलग हो गए। न लड़के ने बहुत बच्चे देखे और न लड़की ने। फिर इनका जो बच्चा पैदा होता है, उसका रोना भी इन्हें गाना लगता है। उसके पोतड़े के धब्बे भी इन्हें माडर्न आर्ट की मिसाल लगते हैं। वो क्या कहावत है- अनोखी का तीतर और बाहर रखूँ कि भीतर...। ऐसा नहीं कि सारे बच्चे ऐसे होते हैं। कुछ में प्रतिभा होती है, कुछ तैयारी करते हैं, सीखते हैं। मगर ज्यादातर तो ऑडिशन में खुशफहमी के मारे माँ-बाप होते हैं। वो दिल से यकीन करते हैं कि उनका बच्चा अनोखा है। उसके जैसा नाच कोई नहीं नाचता और उसके जैसा गाना कोई नहीं गाता, उसके जैसी पेंटिंग कोई नहीं बनाता और उसके जैसा....।

छोटे-छोटे बच्चों को लेकर माता-पिता घंटों ऑडिशन के लिए बैठे रहते हैं। कई बार तो कड़ी धूप में सुबह से शाम और फिर शाम से रात कर दी जाती है। कोई नहीं पूछता कि बच्चे ने कहाँ लघुशंका की, कहाँ खाया-पिया। जिन्हें देखभाल करनी चाहिए, वे खुद ही बच्चों को सताते हैं तो दूसरे कहां तक खयाल रख सकते हैं। अभी एक शो में सैकड़ों लोग ऑडिशन से रह गए, तो उन्होंने हंगामा मचा दिया। नतीजतन शो के आयोजकों को देर रात तक ऑडिशन लेने पड़े। बच्चों ने देर रात तक ऑडिशन दिए। जाहिर है ऑडिशन में नाकाम होने वाला बच्चा भी चैन की सांस ले रहा होगा कि पाप कटा...। गौर से देखिए तो सभी दया के पात्र हैं। जिनके ऑडिशन नहीं हो पाए वे भी, जिनके हो गए वे भी। जो फेल हो गए, वो तो उसी समय रो कर चुप हो लिए मगर जो हो गए हैं, वो आगे बहुत रोने वाले हैं। बच्चों को लेकर माता-पिता का ये मोह घातक है। अगर आपका बच्चा गाता है या नाचता है, तो कोई गलती नहीं करता। उसे मजा लेने दीजिए, हर चीज को कांपीटिशन में मत ले जाइये। फर्ज कीजिए कि आपका बच्चा आपको ऐसे बूढ़ों के कांपीटिशन में ले जा रहा है और कांपीटिशन है जोर से खांसने का, दर्द से कराहने का, चिड़चिड़ाने का...।

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