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'बालिका वधू' के सेट से

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समय ताम्रकर

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मुंबई के नईगाँव स्थित आर.सी डेरी में लोकप्रिय धारावाहिक 'बालिका वधू' का सेट लगा हुआ है। मुंबई शहर से यहाँ पहुँचने में डेढ़ से दो घंटे लगते हैं। इस हवेली के सेट पर सुरेखा सीकरी और कुछ जूनियर कलाकारों पर शॉट फिल्माया जा रहा था। सुरेखा सीकरी पर लंबा संवाद फिल्माने के बाद निर्देशक शब्दों में थोड़ा बदलाव करना चाहते थे, जिससे सुरेखा नाराज हो गईं और उन्होंने फिर शॉट देने से इंकार कर दिया। डबिंग के दौरान उन्होंने वे तीन-चार शब्द बोल दिए, जिन्हें दृश्य में एडिटिंग के दौरान जोड़ दिया जाएगा।

इस शॉट के बाद अगले शॉट की तैयारी शुरू हो गई। ट्रेक बिछाने और प्रकाश व्यवस्था में काफी समय लगता है। इस दौरान कलाकार अपने कमरों में संवाद याद करते हैं। धारावाहिक भले ही हिन्दी भाषा में हो, लेकिन ज्यादातर कलाकार हिंदी ठीक से नहीं पढ़ पाते हैं, इसलिए स्क्रिप्ट की लिपि अँग्रेजी होती है।

'बालिका वधू' की किरदार सुगना पर शॉट फिल्माया जाना था, जिसमें उन्हें सीढ़ियों से चढ़कर एक टेबल से टकराना था। टकराने के बाद टेबल पर रखी चीजें नीचे गिरती हैं, जिसकी आवाज से दादी सा जाग जाती है। इस छोटे से शॉट को फिल्माने में एक घंटे से ज्यादा समय लगा। कभी तकनीकी गड़बड़ हो जाती, तो कभी सुगना टेबल से टकराती और चीजें नीचे नहीं गिरतीं। कभी निर्देशक को लगता की सुगना टेबल से ठीक से नहीं टकरा रही हैं, तो कभी वे कैमरे की रेंज से बाहर हो जाती। अभिनय के दौरान कैमरे और लाइट का भी ध्यान रखना पड़ता है। घंटों की मेहनत में चंद मिनटों शूटिंग हो पाती है।

सेट पर कई लोग मौजूद रहते हैं, जो अपने-अपने काम में लगे रहते हैं। एक शॉट जब तक फिल्माया जाता है, तब तक वे दूसरे की व्यवस्था करते हैं। रोजाना पन्द्रह से सोलह घंटे वे काम कर्‌ते हैं और थकान उनके चेहरों पर पढ़ी जा सकती है।

मॉनीटर पर शॉट देख एपिसोड डॉयरेक्टर प्रदीप यादव ने ‌ओके कहा। आजगमढ़ के रहने वाले प्रदीप यादव से पूछा गया कि इस धारावाहिक की लोकप्रियता की वजह क्या है, तो उन्होंने कहा 'इसका सदाबहार विषय है। साथ ही हमने संदेश को मनोरंजक अंदाज में प्रस्तुत किया है, इसलिए यह धारावाहिक लोकप्रियता की नई बुलंदियों को छू रहा है।‘

'गृहस्थी' नामक धारावाहिक निर्देशित कर चुके प्रदीप 'बालिका वधू' में दो अलग-अलग पीढ़ियों (अवनी गौर और सुरेखा सीकरी) के कलाकारों को निर्देशित कर रहे हैं, उनसे वे तालमेल कैसे बिठाते हैं? पूछने पर वे हँसते हुए वे कहते हैं 'दोनों ही कलाकार समझदार हैं। अभिनय जानते हैं इसलिए कोई परेशानी नहीं आती।'

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इसी बीच प्रदीप के सहायकों ने उन्हें आकर बताया कि शॉट की तैयारी पूरी हो चुकी है वे कैमरा एंगल देख ले। प्रदीप आवश्यक निर्देश देने के बाद फिर लौटे। कम उम्र के कलाकारों से काम लेना मुश्किल रहता है। क्या उन्हें कभी अविका पर गुस्सा नहीं आता जब वो उनके मुताबिक अभिनय नहीं कर पाती? 'अविका पर गुस्सा होने की तो मैं सोच भी नहीं सकता, भले ही मुझे कितने ही रीटेक लेना पड़े। अविका तो पूरी यूनिट की लाड़ली है। सब उसका खयाल रखते हैं।'

प्रदीप फिल्म निर्देशित करने का भी इरादा रखते हैं और उनका मानना है कि टीवी धारावाहिक की तुलना में फिल्म निर्देशित करना मुश्किल काम है क्योंकि टीवी में गलती चल सकती है, फिल्मों में नहीं।

इसी बीच अविका सेट पर आ गई और प्रदीप शॉट निर्देशित करने चले गए। अब दादी सा पर शॉट फिल्माया जाने वाला था, जो आवाज से जाग उठी थी।

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