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रजनी : समझदारी का पाठ पढ़ाने वाला धारावाहिक

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सैकड़ों चैनल इस समय मनोरंजन के लिए उपलब्ध हैं, लेकिन सोफे पर बैठ रिमोट से चैनल की अदला-बदली में ही सारा वक्त गुजर जाता है और एक भी स्तरीय कार्यक्रम हिंदी में दिखाई नहीं देता। वर्षों पहले स्थिति इसके उलट थी। चैनल के नाम पर केवल एक सरकारी दूरदर्शन था, लेकिन इस पर कार्यक्रम इतने स्तरीय आते थे कि टीवी के सामने से हटने का मन ही नहीं करता था। भारतीय साहित्य से कहानियां चुनी जाती थीं। थिएटर्स के एक्टर्स काम करते थे। लोग इन कार्यक्रम को इतना पसंद करते थे कि इस तरह अपने काम की प्लानिंग की जाती थे कि सीरियल मिस न हो।

आज कई धारावाहिक आते हैं और जाते हैं। दो-तीन सप्ताह बाद उनका नाम भी याद नहीं रहता, लेकिन अस्सी के दशक के ये धारावाहिक अभी भी कइयों की याद में ताजा है। ऐसा ही एक धारावाहिक था, ‘रजनी’। इसे बासु चटर्जी जैसे प्रसिद्ध निर्देशक ने बनाया था। बाद में दूसरे निर्देशकों ने भी इसकी कड़ियां निर्देशित की।

‘रजनी’ मनोरंजन के साथ-साथ यह ज्ञानवर्धक भी है। आपको अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ इसमें यह भी संदेश रहता था कि अन्याय को चुपचाप मत सहो, उसके खिलाफ आवाज उठाओ, अपने अधिकारों का इस्तेमाल करो। सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ भी इसमें काफी कुछ कहा गया था।

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‘रजनी’ इसके मुख्य पात्र का नाम था, जिसे प्रसिद्ध लेखक विजय तेंडुलकर की बेटी प्रिया तेंडुलकर ने अभिनीत किया था। प्रिया को इस सीरियल से इतनी प्रसिद्धी प्राप्त हुई कि लोग उन्हें रजनी के नाम से ही जानते थे। बीमारी के चलते कम उम्र में ही प्रिया इस दुनिया से विदा हो गई।

रजनी एक मध्यमवर्गीय परिवार से है और अन्याय या शोषण उसे बर्दाश्त नहीं है। अपने लिए तो ठीक, मोहल्ले वालों या अपरिचितों के लिए भी वह किसी से भी भिड़ जाती थी। एक महिला को अपने धारावाहिक का मुख्य किरदार बनाकर यह बताने की कोशिश की कि महिलाएं भी किसी से कम नहीं हैं। रजनी एक सामान्य गृहिणी है। उसके जरिये यह दिखाया गया कि केवल साहस और निडरता के बल पर आप चुनौती से पार पा सकते हैं। पेश है इस धारावाहिक की एक कड़ी। जिन्होंने देख रखी है वे फिर से देख यादों को ताजा करें। जिन्होंने नहीं देखी है वे इसे देखकर जान सकते हैं कि उस समय धारावाहिकों का कंटेंट कितना सशक्त होता था।


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