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स्त्रियाँ पुरुष बनने की कोशिश न करें : सुरेखा सीकरी

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समय ताम्रकर

WD
धारावाहिक ‘बालिका वधू’ की दादी सा के रूप में सुरेखा सीकरी को जो लोकप्रियता और सफलता मिली है, वो मृणाल सेन, गोविंद निहालानी जैसे निर्देशकों के साथ काम करने पर भी नहीं मिली। सुरेखा का कहना है कि उन्होंने भी नहीं सोचा था कि यह धारावाहिक इतना सफल होगा और आज घर-घर में उन्हें पहचाना जाएगा। अलीगढ़ में कॉलेज के दौरान उन्होंने नाटक देखा था और अभिनय करने का शौक उनके मन में जाग उठा। 1965 में वे एनएसडी में शामिल हो गईं और अभिनय की बारीकियाँ सीखीं। परिणति, सलीम लँगड़े पे मत रो, मम्मो, जुबैदा जैसी फिल्में की और बनेगी अपनी बात, समय, जस्ट मोहब्बत, सात फेरे जैसे टीवी धारावाहिकों में भी वे नजर आईं। पेश है सुरेखा से बातचीत :

नकारात्मक रोल ज्यादा पसंद किए जाते हैं
’बालिका वधू’ में मेरे किरदार को जो लोकप्रियता मिली है, उससे ये बात साबित होती है कि हम नकारात्मकता को ज्यादा पसंद करते हैं। अखबार, टीवी, वेबसाइट्स नकारात्मक खबरों से भरे पड़े रहते हैं क्योंकि लोग सकारात्मक बातों की बजाय नकारात्मक बातों को ज्यादा पसंद करते हैं। ‘बालिका वधू’ के जरिये हम समाज को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। उम्मीद करती हूँ कि लोग इससे जागृत हो सकेंगे। वैसे हमें अच्छी प्रतिक्रियाएँ मिल रही हैं।


दादी और मुझमें समानता
दादी की आयुर्वेदिक दवाई वाली बात से मैं सहमत हूँ। मेरा मानना है कि आयुर्वेद से अच्छा इलाज हो ही नहीं सकता। वैसे भी मैं भारतीय संस्कृति से बेहद प्रभावित हूँ और स्वदेशी चीजों को पसंद करती हूँ। लेकिन युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति से ज्यादा प्रभावित नजर आती है। वे जाइंट फैमिली में नहीं, न्यूक्लियर फैमिली में विश्वास करते हैं। टीवी पर भी बच्चों को बिगाड़ने वाले कार्यक्रम ज्यादा प्रसारित होते हैं। बच्चें क्या देखें इसका फैसला माँ-बाप को करना चाहिए।

माँ औरत ही बन सकती है
मुझे समझ में नहीं आता कि वर्तमान में स्त्रियाँ पुरुष बनने की कोशिश क्यों कर रही हैं? इससे यह साबित होता है कि वे पुरुषों से कमतर हैं। उन्हें स्टेनो बनना मंजूर है, लेकिन घर पर खाना बनाना नहीं। महिलाओं को भगवान ने पुरुषों से अलग गुण दिए हैं। माँ औरत ही बन सकती है, इसलिए पालन-पोषण, घर-परिवार की देखभाल करने वाले गुण उनमें पाए जाते हैं। हो सकता है मुझे रूढि़वादी समझा जाए, लेकिन महिलाओं को अपने घर और परिवार की जिम्मेदारी को प्राथमिकता देनी चाहिए। बचे हुए समय में काम करना चाहिए। लेकिन आज की महिलाएँ यह सोचती हैं कि यदि वे घर के काम करेंगी तो उन्हें पिछड़ा हुआ माना जाएगा।

शिक्षा में बदलाव जरूरी
वर्तमान में दी जाने वाली शिक्षा से मैं खुश नहीं हूँ। शिक्षा व्यावहारिक होनी चाहिए। हमें अपने संस्कारों, खान-पान के बारे में बताया जाना चाहिए ताकि ये सब हमारे जीवन में काम आए। लड़कियों को अलग तरह से शिक्षित किया जाना चाहिए। उनकी अंदर छिपी प्रतिभा को तराशना चाहिए।

फिटनेस का राज
70 की उम्र में भी मुझे ऊर्जावान देख लोग चकित रह जाते हैं। मैं समोसे, चाट, मिठाई, कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीजों की बजाय सादा व संतुलित भोजन करना अधिक पसंद करती हूँ। यही कारण है कि मैं बीमार नहीं पड़ती।

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