Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

काल भैरव मंदिर का इतिहास

हमें फॉलो करें history of kal bhairav temple ujjain

श्रुति अग्रवाल

कालभैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग के मंदिरों में माँस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। प्राचीन समय में यहाँ सिर्फ तांत्रिको को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहाँ तांत्रिक क्रियाएँ करते थे और कुछ विशेष अवसरों पर काल भैरव को मदिरा का भोग भी चढ़ाया जाता था। कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया, लेकिन बाबा ने भोग स्वीकारना यूँ ही जारी रखा।
 
काल भैरव के मदिरापान के पीछे क्या राज है, इसे लेकर लंबी-चौड़ी बहस हो चुकी है। पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा करने वाले राजुल महाराज बताते हैं, उनके दादा के जमाने में एक अँग्रेज अधिकारी ने मंदिर की खासी जाँच करवाई थी। लेकिन कुछ भी उसके हाथ नहीं लगा... उसने प्रतिमा के आसपास की जगह की खुदाई भी करवाई, लेकिन नतीजा सिफर। उसके बाद वे भी काल भैरव के भक्त बन गए। उनके बाद से ही यहाँ देसी मदिरा को वाइन उच्चारित किया जाने लगा, जो आज तक जारी है।
 

कब से शुरू हुआ सिलसिलाः- काल भैरव को मदिरा पिलाने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। यह कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ, यह कोई नहीं जानता। यहाँ आने वाले लोगों और पंडितों का कहना है कि वे बचपन से भैरव बाबा को भोग लगाते आ रहे हैं, जिसे वे खुशी-खुशी ग्रहण भी करते हैं। उनके बाप-दादा भी उन्हें यही बाताते हैं कि यह एक तांत्रिक मंदिर था, जहाँ बलि चढ़ाने के बाद बलि के माँस के साथ-साथ भैरव बाबा को मदिरा भी चढ़ाई जाती थी। अब बलि तो बंद हो गई है, लेकिन मदिरा चढ़ाने का सिलसिला वैसे ही जारी है। इस मंदिर की महत्ता को प्रशासन की भी मंजूरी मिली हुई है। खास अवसरों पर प्रशासन की ओर से भी बाबा को मदिरा चढ़ाई जाती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

उज्जैन का द्वारकाधीश गोपाल मंदिर