देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका शक्तिपीठ के बारे में जानकारी।
कैसे बने ये शक्तिपीठ : जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है।
उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका : यह शक्तिपीठ तीन स्थानों पर बताया जाता है पहला तो मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में रुद्रतालाब के पास हरसिद्धि मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है और दूसरा पश्चिम बंगाल में वर्धमान जिले से 16 किमी गुस्कुर स्टेशन से उज्जयिनी नामक स्थान पर इस शक्तिपीठ के होने की बात कही जाती है वही कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरवपर्वत पर गड़गालिका। तीसरा कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। उक्त में से किसी एक स्थान पर माता दायीं कलाई गिरी थी। इसकी शक्ति है मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।
महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन स्थित हरसिद्धि मंदिर को मुख्य शक्तिपीठ माना जाता है यहां पर देवी की शक्ति को 'मंगल चण्डिका' तथा शिव 'मांगल्य कपिलांबर' है। कहते हैं कि यहां पर माता की कोहनी का निपात हुआ था। इस मान से तीन ही अलग अलग शक्तिपीठ माने जाएंगे।