तेनालीराम के कारनामों से राजगुरु बहुत परेशान थे। हर दूसरे-तीसरे दिन उन्हें तेनालीराम के कारण नीचा देखना पड़ता था। वे सारे दरबार में हंसी का पात्र बनता थे। उन्होंने सोचा कि यह दुष्ट कई बार महाराज के मृत्युदंड से भी बच निकला है। इससे छुटकारा पाने का केवल एक ही रास्ता है कि मैं स्वयं इसको किसी तरह मार दूं।
उन्होंने मन ही मन एक योजना बनाई। राजगुरु कुछ दिनों के लिए तीर्थयात्रा के बहाने नगर छोड़कर चले गए और एक जाने-माने बहुरुपिए के यहां जाकर उससे प्रशिक्षण लेने लगे। कुछ समय में वे बहुरुपिए के सारे करतब दिखाने में कुशल हो गए।
वे बहुरुपिए के वेश में ही वापस नगर चले आए और दरबार में पहुंचे। उन्होंने राजा से कहा कि वे तरह-तरह के करतब दिखा सकते है। राजा बोले, ‘तुम्हारा सबसे अच्छा स्वांग कौन-सा है?’