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तेनालीराम की कहानियां : हाथियों का उपहार

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राजा कृष्णदेव राय समय-समय पर तेनालीराम को बहुमूल्य उपहार देते रहते थे। एक बार प्रसन्न होकर राजा ने तेनालीराम को पांच हाथी उपहार में दिए। ऐसे उपहार को पाकर तेनालीराम बहुत परेशान हो गया। निर्धन होने के कारण तेनालीराम पांच-पांच हाथियों के खर्चों का भार नहीं उठा सकता था, क्योंकि उन्हें खिलाने के लिए बहुत से अनाज की आवश्यकता होती थी।

तेनालीराम अपने परिवार का ही ठीक-ठाक तरीके से पालन-पोषण नहीं कर पाता था अतः पांच हाथियों का अतिरिक्त व्यय उसके लिए अत्यधिक कठिन था, फिर भी अधिक विरोध किए बिना तेनालीराम हाथियों को शाही उपहार के रूप में स्वीकार कर घर ले आया।

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घर पर तेनालीराम की पत्नी सदैव शिकायत करती रहती, 'हम स्वयं तो ठीक से रह नहीं पाते फिर इन हाथियों के लिए कहां रहने की व्यवस्था करें? हम इनके लिए कोई नौकर भी नहीं रख सकते। हम अपने लिए तो जैसे-तैसे भोजन की व्यवस्था कर पाते हैं, परंतु इनके लिए अब कहां से भोजन लाएं? यदि राजा हमें पांच हाथियों के स्थान पर पांच गायें ही दे देते तो कम-से-कम उनके दूध से हमारा भरण-पोषण तो होता।'

तेनालीराम जानता था कि उसकी पत्नी सत्य कह रही है। कुछ देर सोचने के बाद उसने हाथियों से पीछा छुडाने की योजना बना ली। वह उठा और बोला- 'मैं जल्दी ही वापस आ जाऊंगा। पहले इन हाथियों को देवी काली को समर्पित कर आऊं।'

तेनालीराम हाथियों को लकेर काली मंदिर गया और वहां उसने उनके माथे पर तिलक लगाया। इसके बाद उसने हाथियों को नगर में घूमने के लिए छोड़ दिया। कुछ दयावान लोग हाथियों को खाना खिला देते, परंतु अधिकतर समय हाथी भूखे ही रहते। शीघ्र ही वे निर्बल हो गए।


किसी ने हाथियों की दुर्दशा के विषय में राजा को सूचना दी। राजा हाथियों के प्रति तेनालीराम के इस व्यवहार से अप्रसन्न हो गए। उन्होंने तेनालीराम को दरबार में बुलाया और पूछा, 'तेनाली, तुमने हाथियों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों किया?'

तेनालीराम बोला- 'महाराज, आपने मुझे पांच हाथी उपहार में दिए। उन्हें अस्वीकार करने से आपका अपमान होता। यह सोचकर मैंने उन हाथियों को स्वीकार कर लिया। परंतु यह उपहार मेरे ऊपर एक बोझ बन गया, क्योंकि मैं एक निर्धन व्यक्ति हूं मैं पांच हाथियों की देखभाल का अतिरिक्त भार नहीं उठा सकता था अतः मैंने उन्हें देवी काली को समर्पित कर दिया। अब आप ही बताइए, यदि आप पांच हाथियों के स्थान पर मुझे पांच गायें उपहार में दे देते तो वे मेरे परिवार के लिए ज्यादा उपयोगी साबित होतीं।'

राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ, वे बोले, 'यदि मैं तुम्हें गायें देता, तब तुम उनके साथ भी तो ऐसा दुर्व्यवहार करते?'

'नहीं महाराज! गायें तो पवित्र जानवर हैं और फिर गाय का दूध मेरे बच्चों के पालन-पोषण के काम आता। उल्टे इसके लिए वे आपको धन्यवाद देते और आपकी दया से मैं गायों के व्यय का भार तो उठा ही सकता हूं।'

राजा ने तुरंत आदेश दिया कि तेनाली से हाथियों को वापस ले लिया जाए तथा उनके स्थान पर उसे पांच गायें उपहार में दी जाएं।

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