तेनालीराम की कहानियां : बड़ा कौन?
एक बार राजा कृष्णदेव राय महल में अपनी रानी के पास विराजमान थे। तेनालीराम की बात चली, तो बोले सचमुच हमारे दरबार में उस जैसा चतुर कोई और नहीं है इसलिए अभी तक तो कोई उसे हरा नहीं पाया है।
सुनकर रानी बोली, आप कल तेनालीराम को भोजन के लिए महल में आमंत्रित करें। मैं उसे जरूर हरा दूंगी। राजा ने मुस्कुराकर हामी भर ली।
अगले दिन रानी ने अपने अपने हाथों से स्वादिष्ट पकवान बनाए। राजा के साथ बैठा तेनालीराम उन पकवानों की जी-भरकर प्रशंसा करता हुआ खाता जा रहा था। खाने के बाद रानी ने उसे बढ़िया पान का बीड़ा भी खाने को दिया।तेनालीराम मुस्कराकर बोला, 'सचमुच, आज जैसा खाने का आनंद तो मुझे कभी नहीं आया!'तभी रानी ने अचानक पूछ लिया, 'अच्छा तेनालीराम एक बात बताओ। राजा बड़े हैं या मैं?
अब तो तेनालीराम चकराया। राजा-रानी दोनों ही उत्सुकता से देख रहे थे कि भला तेनालीराम क्या जवाब देता है।
अचानक तेनालीराम को जाने क्या सूझी, उसने दोनों हाथ जोड़कर पहले धरती को प्रणाम किया, फिर एकाएक जमीन पर गिर पड़ा। रानी घबराकर बोली, 'अरे-अरे, यह क्या तेनालीराम?'
तेनालीराम उठकर खड़ा हुआ और बोला 'महारानीजी, मेरे लिए तो आप धरती हैं और राजा आसमान! दोनों में से किसे छोटा, किसे बड़ा कहूं कुछ समझ में नहीं आ रहा है!
वैसे आज महारानी के हाथों का बना भोजन इतना स्वादिष्ट था कि उन्हीं को बड़ा कहना होगा इसलिए मैं धरती को ही दंडवत प्रणाम कर रहा था।'
सुनकर राजा और रानी दोनों की हंसी छूट गई।
रानी बोली 'सचमुच तुम चतुर हो तेनालीराम। मुझे जिता दिया, पर हारकर भी खुद जीत गए।'
इस पर महारानी और राजा कृष्णदेव राय के साथ तेनालीराम भी खिल-खिलाकर हंस दिए।