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9/11 एक आपबीती

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पेरी सन्मुख रा

मेरी जिंदगी का यह अब तक का सबसे बड़ा दुःस्वप्न था। मैं आपके सामने 'त्रासदी दिवस' की वह पूरी तस्वीर खींचना चाहता हूँ, जिसे कि आप देखना चाहते हैं। मुझे यह सब अविश्वसनीय सा लगता है कि मैं कैसे जिंदा बच गया। मैं अपने जीवित रहने को चमत्कार ही मानता हूँ।

हमले वाले दिन मैंने अमेरिकी समय के अनुसार सुबह 8.45 बजे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टॉवर दो में 50वीं मंजिल पर अपने दफ्तर में प्रवेश किया। मैं बीमा कंपनी गाई कारपेंटर के लिए काम करता हूँ।

जोरदार धमाका : मैं और मेरे ज्यादातर मित्र सुबह 8.15 बजे दफ्तर पहुँच जाते हैं। लेकिन मंगलवार, 11 सितंबर को मैं 15 मिनट देर से पहुँचा। पहुँचते ही मैंने अपने बैग से सेल फोन और पीडीए निकाला ही था कि जोरदार धमाके की आवाज सुनाई दी। मैं जिस खिड़की के पास बैठता था, वहाँ से मैं एंपायर स्टेट बिल्डिंग और ट्रेड सेंटर टॉवर (एक) का खूबसूरत दृश्य देखा करता था। आवाज होते ही मुझे टॉवर एक में भयानक हादसा दिखाई दिया।

शुरू हुई दौड़ : मैंने फौरन बैग अपने हाथ में लिया और बाहर की तरफ दौड़ लगा दी। मैं इमरजेंसी सीढ़ियों की तरफ दौड़ रहा था। हम हर हफ्ते इसी सीढ़ी पर इमरजेंसी ड्रिल में हिस्सा लेते थे। हमें कहा भी गया था कि किसी भी इमरजेंसी की स्थिति में इन्हीं सीढ़ियों का इस्तेमाल करना न कि एलीवेटर का। इसी हिदायत को ध्यान में रखकर मैं सीढ़ियों की तरफ भागा। मेरे सभी साथी व अन्य लोग भी उसी तरफ भाग रहे थे। सीढ़ियाँ काफी संकरी थीं, बमुश्किल दो ही आदमी उनमें समा सकते थे। सभी लोग चिल्ला रहे थे, दहशत में थे और सिर्फ अपनी जिंदगी बचाने के लिए भाग रहे थे।

मिसाइल... नहीं विमान : लोगों में हादसे को लेकर अलग-अलग राय थी। कुछ का कहना था कि एक मिसाइल टॉवर से आकर टकराई है। कुछ का कहना था कि एक विमान इमारत से टकराकर दुर्घटना का शिकार हुआ है। हालाँकि उस समय टॉवर दो में रुके रहने की घोषणा हो रही थी कि टॉवर सुरक्षित है और सब कुछ नियंत्रण में है। यह घोषणा सुनकर कुछ लोग वापस लौट गए लेकिन मैं और मेरे कुछ साथी इन शब्दों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे, जो कि एनाउंसमेंट के दौरान निकले थे।

लेकिन मेरे मन और मस्तिष्क ने कहा कि इस पर विश्वास न करो और निकल भागो। मैं सीढ़ी पर दौड़ रहा था। उनसे उतर रहे बूढ़े और औरतें दौड़ नहीं पा रहे थे, लेकिन वे हम जैसोंके लिए जगह बनाते जा रहे थे। यह बुरी स्थिति थी, लेकिन क्या किया जा सकता था, हर कोई असहाय था।

इमारत हिली : 15 वीं मंजिल पर हमने पाया कि लिफ्ट काम कर रही थी। हमने बूढ़ों और औरतों से कहा कि वे एलीवेटर ले लें। लेकिन हमने लिफ्ट नहीं ली, क्योंकि हम युवा थे और चुस्त भी। सो, हम भागते ही रहे। जब हम 10वीं मंजिल पर थे तो हमें तेज आवाज सुनाई पड़ी। पूरी इमारत हिलने लगी। हमने और तेज दौड़ लगा दी। वहाँ स्थिति लगभग भगदड़ की थी।

सीढ़ियों को फलाँगना : पहले और दूसरे हमले के बीच सिर्फ 18 मिनट का अंतर था। मैं अपने पर विश्वास नहीं कर पा रहा था कि कैसे मैं 18 मिनट में इतना नीचे आ गया। मैं सीढ़ियाँ उतर नहीं रहा था, फलाँग रहा था। इस दौरान मैं कई बार गिरा और उठा और मैंने भागने का क्रम जारी रखा। लेकिन मुझे नहीं पता था कि मैं किस दिशा में दौड़ रहा था। मेरा एकमात्र मकसद था किसी भी सूरत में इमारत से बाहर निकल आना।

कानों के पर्दे : मेरी किस्मत देखिए कि मेरे बाहर आने कुछ मिनटों के भीतर ही 110 मंजिला टॉवर धराशायी हो गया। मुझे लगा कि मेरे कानों के पर्र्द फट चुके हैं और मुझे कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही है। मैं काफी दहशत में था। मैं वहाँ से जितनी तेज भाग सकता था, भाग रहा था। वहाँ संचार का कोई जरिया नहीं था। सेल फोन भी काम नहीं कर रहा था। सभी संचार लाइनें ध्वस्त हो चुकी थीं। किसी तरह मैं अपने दोस्त कल्याण के पास पहुँच पाया। मैंने संदेश छोड़ा कि मैं ठीक हूँ और मैंने अपने साथियों के नंबर भी दिए और संदेश भी कि वे भी ठीक हैं।

चमत्कार : जब मैं वहाँ बातें कर रहा था तो मैंने देखा कि पहला टॉवर भी मटियामेट हो रहा है। वहाँ बहुत तेज आवाज हुई। मैं कुछ भी नहीं देख सका। इमारत गिरने के बाद वहाँ सिर्फ कंक्रीट और धुँआ था। मेरा मौत के मुँह से बचना वाकई चमत्कारिक था। हम वहाँ से चलते रहे और दौड़ते रहे और किसी तरह एक फेरी सर्विस तक पहुँचने में सफल रहे। फेरी सेवा चालू थी और हमने फेरी ली। फिर हम न्यूजर्सी पहुँच गए। वहाँ से हम पैदल जर्सी शहर पहुँचे और फिर अपने एक मित्र के घर पर रुके।

बेहोशी : मैंने वहाँ एक कप चाय ली और टीवी पर हादसे को देखा। मैं हादसे को देखकर सकते में था। एक क्षण मेरी धड़कन रुक सी गई। मैं बेजुबान हो गया था। मैं घटना को बयान करना चाहता था। लेकिन कर नहीं पा रहा था। यह मेरे लिए बेहोशी की स्थिति थी। मैं मन ही मन भगवान को धन्यवाद दे रहा था कि मैं जिंदा हूँ। मेरे इर्द- गिर्द कई लोग थे, लेकिन मैं किसी को भी नहीं देख पा रहा था। एक पल तो मैंने खुद को अकेला महसूस किया। उस समय मेरे दिमाग में कोई उथल-पुथल नहीं थी।

पुनर्जन्म : मैं तो इतना ही कहूँगा कि 11 सितंबर को मेरा पुनर्जन्म हुआ। यह दिन मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा। मैं अभी तक विश्वास नहीं कर पा रहा कि टॉवर वहाँ नहीं है और हादसे के वक्त मैं वहाँ था। मैं उस दिन ठीक से सो भी नहीं पाया। मैं तो यही कहूँगा-'मैं जिंदा हूँ, मैं सांस ले रहा हूँ, मेरा रक्त दौड़ रहा है, मेरा दिल धड़क रहा है।

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