हँसी ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है
ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू
'फ़राज़' तूने उसे मुश्किलों में डाल दिया
ज़माना साहिबे-ज़र और सिर्फ़ शाइर तू॥
अहमद फ़राज़
अगर तू मुझे राह में अकेला छोड़ कर जाना चाहता है तो बड़े शौक़ से हँसी-ख़ुशी से चला जा। क़दम क़दम पर रुक् रुक कर तू ये क्या सोचने लगता है। ऎ 'फ़राज़' तू ने ही उसे मुश्किलों में डाल रखा है। क्योंकि ज़माना तो दौलत वालों का साथ देता है। तू तो सिर्फ़ शाइर है, तेरे पास तो दौलत है नहीं। इसी लिए वो फ़ैसला नहीं कर पा रहा है के एक शाइर का साथ दे या दौलत वालों का।