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रोक सकता हमें ज़िन्दान-ए-बाला क्या मजरूह

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रोक सकता हमें ज़िन्दान-ए-बाला क्या मजरूह
हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं -------मजरूह सुलतानपुरी

ज़िन्दान-ए-बला------क़ैदख़ाने की मुसीबतें, जेल के कष्ट
ऎ मजरूह हमें जेल की मुसीबतें रोक नहीं सकतीं। हमारे इरादों को बदल नहीं सकतीं। हम आवाज़ की तरह हैं जो दीवारों से भी नहीं रुकती और उनसे छनकर बाहर निकल जाती है। इसी तरह मैं और मेरे विचार भी इन दीवारो की मुसीबतों से डरने वाले, या रुकने वाले नहीं हैं।

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