परिवार किसी के लिए भी सबसे खास और दिल के सबसे पास होता है... लेकिन कई बार ऐसा समय आता है, जब इंसान को अपने सपनों को पूरा करने के लिए कुछ कुर्बानी देनी पड़ती है। ऐसा ही कुछ वंदना कटारिया के साथ हुआ है... जब प्लेयर टोक्यो ओलंपिक की तैयारियों में बिजी थी, तब उनके पिता का निधन हो गया था। लेकिन वह अपने पिता के अंतिम दर्शन के लिए घर नहीं जा पाईं और उन्होंने खेल में बने रहने का फैसला किया। आज टोक्यो में हैट्रिक लेते हुए इतिहास रचकर उन्होंने अपने उस फैसले को सही सिद्ध किया और पिता को सच्ची श्रृद्धांजलि दी है।
125 सालों में पहली बार हुआ ऐसा कारनामा
आज हर किसी की जुबां पर सिर्फ और सिर्फ वंदना कटारिया का ही नाम सुनने को मिल रहा है। साउथ अफ्रिफा के खिलाफ उन्होंने कमाल का खेल दिखाते हुए हमेशा-हमेशा के लिए अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवा लिया। वंदना 'करो या मरो' वाले मुकाबले में अफ्रीकी टीम के खिलाफ तीन गोल दागे और ओलंपिक में हैट्रिक बनाने वाली भारतीय की पहली महिला खिलाड़ी बन गई। वंदना से पहले किसी ने भी 125 सालों के इतिहास में महिला हॉकी में हैट्रिक नहीं बनाई थी।
वंदना ने मैच के चौथे, 17वें और 49वें मिनट में गोल किए और भारत को 4-3 से मुकाबला जीतने में एक अहम योगदान निभाया। ओवरऑल रिकॉर्ड की बात करें तो 1984 के बाद पहली बार किसी भारतीय ने हैट्रिक लगाई। ओलंपिक में भारतीय हॉकी की यह ओवरऑल 32वीं हैट्रिक रही। खास बात ये है कि, 32 में सात हैट्रिक मेजर ध्यानचंद के नाम पर दर्ज हैं। मेजर ध्यानचंद के बाद बलबीर सिंह के नाम पर 4 हैट्रिक लगाने का रिकॉर्ड दर्ज है।
ट्रेनिंग के चलते नहीं कर पाई थे पिता के दर्शन
वंदना देवभूमि हरिद्वार के रोशनबाद से ताल्लुक रखती है। उन्होंने बचपन से ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था, तब कई लोग उनका मजाक उड़ाते थे। लेकिन उनके परिवार ने वंदना का पूरा साथ दिया। उनके पिता दूध का कारोबार शुर किया था और बेटी के सपने को पूरा करने में उसका पूरा समर्थन किया।
बता दें कि, जब वंदना बेंगलुरु में टोक्यो ओलंपिक की तैयारियों में जुटी हुई थी, तब उनके पिता नाहर सिंह का निधन हो गया था। पिता के निधन के बाद वो उस समय अपने गांव नहीं जा सकी थीं। लेकिन अब उन्होंने ओलंपिक में हैट्रिक गोल लगाकर अपने दिवांगत पिता को श्रद्धांजली दी।
उनके गांव में फिलहाल जश्न का माहौल है। ग्रामीण उनके घर जाकर बधाई दे रहे हैं। वंदना का सपना है कि वो अपने पिता के लिए गोल्ड मेडल जीतें। जब उनको पिता के निधन की खबर मिली थी तब वो काफी असमंजस में थीं कि पिता के सपने को पूरा करें या उनके अंतिम दर्शन के लिए जाए। तब उनकी मां सोरण देवी और भाई पंकज ने उनका साथ दिया।
आर्थिक तंगी के आगे भी नहीं हारी हिम्मत
वंदना ने अपने प्रोफेशनल हॉकी की शुरुआत मेरट से की थी। वो लखनऊ स्पोर्ट्स हॉस्टल पहुंची लें आर्थिक तंगी के कारण अच्छी हॉकी स्टिक और किट नहीं खरीद पाई। पैसे की तंगी का सामना करने के बाद उन्होंने अपने हौसलों को पस्त नहीं होने दिया। 2010 में राष्ट्रीय हॉकी टीम में चुने जाने के बाद अगले ही साल स्पोर्ट्स कोटे से रेलवे में जूनियर TC पद पर उनकी नौकरी लगी तब जाकर उनकी आर्थिक तंगी कम हुई।