Goa Diwali: भारत के अलग-अलग हिस्सों में दीवाली के त्योहार को अलग-अलग परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। गोवा में इस त्योहार की खास पहचान है नरक चतुर्दशी, जिसे 'नरकासुर वध' के नाम से भी जाना जाता है। यहां इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को असली हीरो माना जाता है, जो राक्षस नरकासुर का वध करते हैं। इस दिन गोवा के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर पुतला दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
नरक चतुर्दशी: गोवा की विशेष दीवाली परंपरा
गोवा में दीवाली का सबसे प्रमुख दिन नरक चतुर्दशी होता है। इस दिन की खासियत यह है कि यहां रावण का नहीं, बल्कि नरकासुर का पुतला दहन किया जाता है। गोवा के लोग नरकासुर के विशाल पुतले बनाते हैं, जो बुराई का प्रतीक होते हैं, और उन्हें सुबह के समय जलाया जाता है। यह परंपरा इस बात का प्रतीक है कि बुराई का अंत श्रीकृष्ण द्वारा किया गया था।
श्रीराम नहीं, श्रीकृष्ण होते हैं दीवाली के नायक
भारत के बाकी हिस्सों में दीवाली का संबंध श्रीराम के अयोध्या लौटने और रावण पर विजय से है। लेकिन गोवा में इस पर्व का मुख्य पात्र भगवान श्रीकृष्ण होते हैं। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था और उसके अत्याचारों से दुनिया को मुक्त किया था। इस घटना को प्रतीकात्मक रूप से गोवा में हर साल नरक चतुर्दशी के दिन पुतला दहन करके मनाया जाता है।
पुतला दहन: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक
नरक चतुर्दशी के दिन गोवा के स्थानीय लोग बड़े-बड़े पुतले बनाते हैं, जो राक्षस नरकासुर का प्रतीक होते हैं। ये पुतले कागज, लकड़ी और कपड़े से बनाए जाते हैं, जिनमें आतिशबाजी भरी जाती है। ये पुतले ज्यादातर गांवों और शहरों के प्रमुख स्थानों पर स्थापित किए जाते हैं। सुबह होते ही इन पुतलों का दहन किया जाता है, जो बुराई के अंत का प्रतीक है।
गोवा की दीवाली परंपराओं में सामूहिक उत्सव
गोवा में नरक चतुर्दशी का उत्सव सामूहिक होता है। हर मोहल्ले, गांव और कस्बे में लोग मिलकर पुतला दहन की तैयारी करते हैं। इस मौके पर लोग एकजुट होकर श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं और बुराई के अंत की खुशी मनाते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक इस त्योहार में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और इसे धूमधाम से मनाते हैं।
गोवा की नरक चतुर्दशी परंपरा न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह सामूहिकता, भाईचारे और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है। दीवाली का यह अनूठा रूप गोवा को बाकी भारत से अलग पहचान देता है।