कोलम्बो में 2022 की आर्थिक मन्दी ने राजनैतिक अस्थिरता पैदा कर दी थी, जिसमें लोगों को ज़रूरी चीज़ों के लिए भी भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
संयुक्त राष्ट्र की एक मानवाधिकार रिपोर्ट में श्रीलंका में मूलभूत स्वतंत्रताओं के लिए नए सिरे से दरपेश ख़तरों को उजागर किया गया है, जिनमें दमनकारी क़ानूनों, बार-बार होते मानवाधिकार उल्लंघन और उससे भी अधिक मामलों का ज़िक्र किया गया है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय – OHCHR ने गुरूवार को जारी की है।
रिपोर्ट में उन विभिन्न क़ानूनों और प्रस्तावों का ज़िक्र किया है। जो सरकार ने वर्ष 2023 के बाद प्रस्तुत किए हैं। इनमें सुरक्षा बलों को अत्यधिक शक्तियां दी गई हैं, मगर अभिव्यक्ति, मत, और सभाएं करने की स्वतंत्रताओं को बड़े पैमाने पर प्रतिबन्धित किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय वोल्कर टर्क ने श्रीलंका में निकट भविष्य में होने वाले चुनावों के माहौल में ये चलन चिन्ताजनक है।
वोल्कर टर्क ने कहा है कि देश चूंकि राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों के नज़दीक पहुंच रहा है, उसके पास उन रूपान्तरकारी बदलावों के लिए फिर से प्रतिबद्धता जताने का अवसर है, जिनकी मांग श्रीलंका के व्यापक वर्ग ने की है। इनमें जवाबदेही और सुलह-सफ़ाई की भावना शामिल हैं।
देश के अन्य संकट : रिपोर्ट में वर्ष 2022 के आर्थिक संकट के लम्बे चल रहे प्रभावों पर भी चर्चा की गई है, जो विशेष रूप से कमज़ोर हालात वाले लोगों पर अधिक असर दिखा रहे हैं। वोल्कर टर्क ने कहा कि आर्थिक नीतियों के मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों से निर्देशित होने की ज़रूरत है।
रिपोर्ट में वर्ष 2009 में समाप्त हुए गृहयुद्ध के दौरान और उसके बाद अंजाम दिए गए अपराधों के लिए लगातार दंडमुक्ति का भी ज़िक्र किया गया है। साथ ही 2019 में ईस्टर रविवार को हुए बम विस्फोटों की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया गया है।
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने देश में निर्वाचित होने वाली नई सरकार से टकराव के मूल कारणों पर ध्यान देने का भी आग्रह किया है।
रिपोर्ट में श्रीलंका में पत्रकारों, सामाजिक विवादों और परिवारों की सहायता करने वाले सिविल सोसायटी कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किए जाने के लम्बे समय से चले आ रहे सिलसिले को भी उजागर किया गया है।
मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए ज़िम्मेदार तत्वों पर न्यायिक कार्रवाई नहीं किए जाने के माहौल में रिपोर्ट में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से लक्षित प्रतिबन्धों और अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अन्य उपायों के ज़रिए जवाबदेही निर्धारित किए जाने की भी पुकार लगाई गई है।