नई दिल्ली। संसद में गुरुवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2018-19 में निवेश माहौल को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक अनिश्चितता दूर करने और नीतियों में स्थिरता लाने के उपाय सुझाए गए हैं।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि नीति-निर्माताओं को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे भविष्य के परिणामों का पूर्वानुमान लगाया जा सके। उन्हें नीतियों के निष्पादन में निरंतरता बनाए रखना चाहिए। नीतियों के बेहतर परिणाम सुनिश्चित करने के लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि निवेशकों को यह भरोसा दिलाया जा सके कि भविष्य में नीतियों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा।
सरकार निवेशकों को भविष्य के प्रति आश्वस्त रखने के लिए आर्थिक नीतियों को विभिन्न श्रेणियों (जैसे तटस्थ और परिवर्तनशील) में विभाजित कर सकती है। इसमें आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता सूचकांक की तिमाही समीक्षा का सुझाव दिया गया है। साथ ही आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता उप सूचकांक बनाए जाने की भी बात कही गई है ताकि वित्तीय, कर, मौद्रिक व्यापार और बैंकिंग नीतियों से उपजने वाली अनिश्चितताओं का पता लगाया जा सके।
नीति-निर्माण में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार को अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों के पालन की सलाह दी गई है। इसमें कहा गया है कि गुणवत्ता प्रमाणन की प्रक्रिया के लिए लोगों को पर्याप्त प्रशिक्षण देना जरूरी है ताकि आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता देश में निवेश को हतोत्साहित करती है, जबकि भविष्य में नीतियों के पूर्वानुमान के अनुरूप कार्य और नीतियों की स्थिरता देश में निवेश को आकर्षित करने में मदद करती है।
वैश्विक स्तर पर मान्य आर्थिक नीति अनिश्चितता (ईपीयू) सूचकांक के आधार पर भारत में आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता के पिछले एक दशक में घटने का हवाला देते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2011-12 की अवधि में जब नीतियों में पूरी तरह से ठहराव की स्थिति थी और जिसके कारण आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता सबसे ऊंचे स्तर पर थी, लेकिन इसके बाद से इसमें लगातार कमी आती जा रही है।
हालांकि बीच में कुछ समय के लिए इसमें बढ़ोतरी भी देखी गई। इसमें कहा गया है कि देश में आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता की स्थिति 2014 तक वैश्विक अनिश्चितताओं के अनुरूप बनी रही। हालांकि 2015 की शुरुआत से इसमें कमी आने लगी और 2018 के आते-आते इसमें दोगुनी कमी आ चुकी थी।